याद आता है
अपना बचपन,
जब हम उड़ान में रहते थे
बेफिक्री के असमान में रहते थे
दिन गुजरता था बदमाशियों में
पर रात अपने ईमान में रहते थे !
याद आता है,
दिन भर तपते सूरज को चिढाना
आंधियो के पीछे भागना
उनसे आगे निकलने की कोशिश करना
जलती तेज हवाओं से हाथ मिलाना,
और फिर ..............
पता ही नही चला कि
कब माँ की कहानियों की गोद से उठकर
हमारी नींद सपनो के आगोश में चली गई !
दिन से अच्छी थी रातें
हमेशा से
और ईमानदार भी !
इन्ही रातों की
चमकती चांदनी की रेत में लिपटे हुए
अपने आप में खोए
अपने मासूमियत के दायरे में सिमटे हुए
अक्सर ये वादा किया खुद से
की छोड़ेंगे नही,
बचपन की मासूम मुहब्बत को !
उसी चमकती रेत को बताया
अपना पहला सपना,
उसी की हंथेली पर लिखा
अपने पहले प्यार का नाम,
जब खुश हुए
उसी की गोद में किलकारियां भरी,
जब उदास हुए
उसी के सीने से लिपट कर रोए भी !
याद आती है आज
वो माँ की कहानियो से भरी रातें !
वो रातें भी,
जो अकेले में
चांदनी से बतियाते हुए खर्च कर दी !
वो अनमोल रातें
चमकती रेत सी रातें
कम से कम चुभती तो नही थी,
सड़को की धूल की तरह
आँखों में !
आज सोचता हूँ अक्सर
कि इन चमचमाती सड़को से भली थी
अपने गाँव कि पगडंडियाँ,
जिन पर चले
कई बार गिरे
और संभल भी गए
कभी हिम्मत नही छूटी !
हर लड़खड़ाहट पर निश्चय किया
"हारेंगे नहीं !"
"टूटेंगे नहीं !"
लेकिन आज हरा दिया
इन सड़को कि रफ़्तार ने,
धीमी पड़ गई सपनो की गति,
भूलने की कगार तक आ पहुंचा
बचपन से किया हर वादा!
बड़ी बड़ी इमारतों से
ढक गया चाँद !
कही खो गई
दिनों के बोझ तले
चांदनी की चमकीली रेत
अब आँखों में नही चमचमाती
अब तो चुभती है
सड़को की धुल !
दिन अब उर्जावान नही रहे ,
बोझिल ह़ो गए !
रातें अब ईमानदार नही रही !
और हममे भी नही रही
पहले सी मासूमियत !!!!
…………………………….. अरुन श्री !
Comment
ek khubsurat kvita man ko chhuti hui
और हममे भी नही रही
पहले सी मासूमियत
इस रचनापर मेरी बधाई स्वीकर करें, अरुण जी.
बहुत बढ़िया रचना .बधाई
और हममे भी नही रही
पहले सी मासूमियत !!!!
…………………………….. अरुन श्री !....damdar kavy...badhai.
इस सुन्दर कविता के लिए बधाई स्वीकार करें अरुण जी.
बहुत बढ़िया रचना . हार्दिक बधाई स्वीकारे....
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