बेवफा होना तेरा क्या क्या सितम ढाने लगा
अब तो मैं मंदिर में भी जाने से घबराने लगा
हो अलग तुमने जला डाली थी मेरी याद तक
मैं तेरी तस्वीर से दिल अपना बहलाने लगा
भोर की पहली किरण मैंने चुराकर दी जिसे
दूसरे के घर को अब वो फूल महकाने लगा
सर्द रातों में लिपट जाता था कोहरे की तरह
मैं बना सूरज तो दुःख का चाँद शरमाने लगा
घर के आगे जब से इक ऊँची ईमारत बन गई
मेरे घर आने से अब सूरज भी कतराने लगा
………………………………….. अरुन श्री !
Comment
ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकारें.
घर के आगे जब से इक ऊँची ईमारत बन गई
मेरे घर आने से अब सूरज भी कतराने लगा
बहुत खूब !!
//घर के आगे जब से इक ऊँची ईमारत बन गई
मेरे घर आने से अब सूरज भी कतराने लगा//
वह वाह - बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है अरुण जी, बधाई स्वीकार करें.
एक मिसरे में थोडा परिवर्तन किया है -
भोर की पहली किरण मैंने चुराकर दी जिसे
दूसरे के घर को अब वो फूल महकाने लगा
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