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माँ

    आज फिर घर पर बहुत झगड़ा हुआ। “अब मैं घर वापिस नहीं आउंगा, नदी में डूब कर मर जाउंगा।” गुस्से से अपनी माँ को बोलकर वो घर से निकल पड़ा।
    “माँ, मुझे माफ कर दे, उठ माँ! आंखे खोल। तू आंखे क्यों नहीं खोलती” दोपहर को जब वो गुस्सा शांत होने के बाद घर वापिस आया तो आंगन में पड़ी अपनी माँ से लिपट कर जोर जोर से बोल रहा था।

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Comment by AVINASH S BAGDE on February 15, 2012 at 11:07am

nice one Ghai sahab

सुन्दर लघु-कथा 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 14, 2012 at 10:21am

क्षणिक आवेश किस हद किसी के हृदय को विचलित कर सकत है ! बहुत सुन्दर लघु-कथा भाई साहब.  बहुत-बहुत सुन्दर.

बधाई

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