‘क्या ठाकुर साहिब, आपने महरी के लड़के को कालेज पूरा करते ही नौकरी लगवाकर शहर भेज दिया !’
‘तू नहीं समझेगा छगन, अगर वो गांव में रहता तो अपने साथियों को भी पढ़ाता और प्रेरित करता और वो हमारे घरों का काम न करते।’ ठाकुर साहिब के चेहरे पर कुटिल मुस्कान थी।
Comment
सौरभ भाई, हौसला अफजाई के लिए बहुत धन्यवाद!
उम्मीद है भविष्य में भी आपका आशीर्वाद मिलता रहेगा।
लाभार्थी वर्ग के एक होनहार युवक के प्रति बुर्जुआ प्रतिनिधि का विद्रुप व्यवहार. वाह !!
वैसे यह किसी ठाकुर मात्र की काइयाँ कारगुजारी न रह कर अब हर उस शासक की कारिस्तानी हो गयी जो तथाकथित हरवाहा-घरवहा-चरवाहा विद्यालयों के नाम पर अपने निजी तबके का भला करने का षडयंत्र और कुचक्र रचता है. आशय मात्र यह कि एक पूरा वर्ग शिक्षा के लाभ से वंचित रहे किन्तु उस शासक की उदारता का डंका बजता रहे.
रवि साहब, इस करारे व्यंग पर मेरी हार्दिक बधाई.
wah kya bat hain chhoti magar jabardast var
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