For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : बहू-बेटी

लघुकथा : बहू-बेटी

“अम्मा ! तुम भी घर का कोई काम किया करो, नहीं तो इस तरह तुम्हारे हाथ-पैर जुड़ जाएंगें।” घुटनों के दर्द से करहाती अपनी माँ की दुर्दशा देखकर ससुराल से आई बेटी ने कहा।
“ हाँ बेटी ! तू ठीक ही कहती है, किया करूंगी कुछ काम....”
“ हाँ दीदी, मैने भी कई बार अम्मा जी से कहा है कि आप भी कुछ काम किया करें .......” पास बैठी बहू ने कहा
” काम किया करूँ, तो तुझे ब्याह कर लाने का मुझे क्या फायदा........... काम किया करो....” सास ने बहू की बात को बीच में ही काटते हुए तीखे स्वरों में कहा।

Views: 538

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 3:53pm

.सार्थक लघु कथा  ! लेखनी की इस धार को सलाम है .............  बधाई मित्र !

Comment by राज लाली बटाला on August 29, 2011 at 8:10pm

Aapne Sach likha hai !! Khoob hai !!


Comment by monika on August 25, 2011 at 3:44pm

आदरणीय रवि प्रभाकर जी आपने बहुत ही गहरी बात कही हे इस लघु कथा के माध्यम से ये भेद जो इस नाज़ुक रिश्ते मे बना हुआ हे वो शायद कभी ख़त्म नही हो सकता हाँ आज समय के साथ सास बहू के रिश्ते की परिभाषा ज़रूर बदली हे सोच भी बदली हे मगर आज भी कुछ परिवार हे जहाँ बहू और बेटी का फ़र्क उनके बीच की दूरिया कभी दूर नही हो पाती इस भावुक और उम्दा लघु कथा के लिए आपको बहुत बहुत बधाई.

Comment by आशीष यादव on August 22, 2011 at 11:45am

kam shabdon me kitni khubsurati se aapne in kunthao ko prakat kar diya.

shayad isi ko laghukatha kahte hai.

Comment by Ravi Prabhakar on August 22, 2011 at 10:21am

बागी भाई एवं श्रद्धेय पाण्डेय जी,
आपकी हौसला अफजाई के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2011 at 9:24am

रवि प्रभाकरजी, इस तरह के मनस को संतुलित होने में कितने वर्ष अभी और लगेंगे इसकी चर्चा तो बाद में. पहले तो ये कि इन व्यक्तिगत किन्तु सार्वभौमिक कुंठाओं की क्या दवा है?

आपकी प्रस्तुत कथा ऐसी विसंगतियों की धार को कुछ कुंद कर सके इस अपेक्षा के साथ हार्दिक शुभकामनाएँ.

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 22, 2011 at 9:21am

आदरणीय रवि प्रभाकर जी, आपकी कलम कम शब्दों में वह लिख जाती है जिसको कहने के लिए एक किताब की जरुरत है, प्रस्तुत लघु कथा धीरे से प्रारंभ होकर एकाएक चोट करती है, इस लघु कथा का भाव उसी प्रकार है जैसे कोई शक्तिशाली पटाका का पलीता धीरे धीरे सुलगते हुए अचानक धम्म की आवाज के साथ समाप्त किन्तु सन्न की आवाज देर तक कानो में गूंजता रहता है |

 

भाव प्रधान लघु कथा हेतु बहुत बहुत आभार |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service