सुनो राजन !
तुम्हे राजा बनाया है हमीं ने !
और अब हम ही खड़े है
हाथ बांधे
सर झुकाए
सामने अट्टालिकाओं के तुम्हारे !
जिस अटारी पर खड़े हो
सभ्यता की ,
तुम कथित आदर्श बनकर ,
जिन कंगूरों पर
तुम्हारे नाम का झंडा गड़ा है ,
उस महल की नींव देखो !
क्षत-विक्षत लाशें पड़ी है
हम निरीहों के अधूरे ख्वाहिशों की ,
और दीवारें बनी है
ईंट से हैवानियत की !
है तेरे संबोधनों में दब चुकी
चीत्कार सब कुचले हुओं की !
अट्टाहासों से तुम्हारे हार माने
सिसकियाँ ,
आहें सभी हारे हुओं की !
है भरे भंडार तेरी वासना के
भूख हम सब की तुम्हें दिखती नहीं है !
सिसकियाँ तुम सुन न पाए
अब मेरी हुंकार देखो ,
आँख से झरता हुआ अंगार देखो !
मैं उठा तो फिर कहाँ रोके रुकुंगा !
एक दिन मैं नींव का पत्थर
कंगूरों तक चढूंगा !!
........................................ अरुन श्री !
Comment
उत्साहवर्धन के लिए आप सभी का ह्रदय से आभार ! धन्यवाद !
है तेरे संबोधनों में दब चुकी
चीत्कार सब कुचले हुओं की !
अट्टाहासों से तुम्हारे हार माने
सिसकियाँ ,
आहें सभी हारे हुओं की !
bahut umda rachna
//अब मेरी हुंकार देखो ,
आँख से झरता हुआ अंगार देखो !
मैं उठा तो फिर कहाँ रोके रुकुंगा !
एक दिन मैं नींव का पत्थर
कंगूरों तक चढूंगा//
अच्छी रचना, अरुण जी, बधाई हो |
aaj ke nav yuavakon ko isi jajbe ki jaroorat hai.bahut prernadayak prastuti.
सिसकियाँ तुम सुन न पाए
अब मेरी हुंकार देखो ,
आँख से झरता हुआ अंगार देखो !
मैं उठा तो फिर कहाँ रोके रुकुंगा !
एक दिन मैं नींव का पत्थर
कंगूरों तक चढूंगा !!
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