सच्चाई को खोजने चला था,
झूठ ही झूट मिले,
मोहब्बत खोजने चला,
तो बेवफाई मिली,
जब खोजना छोड़ दिया,
तो तन्हाई मिली,
अब तो खुदी को खोजने चला हूँ ,
जो चाहा था बेवजह था
जो मिला है बेइंतहा है
यूही भटक रहा था
अब सकून ही सकून है |
Comment
Thanks to all for appreciation
सच्चाई को खोजने चला था,
झूठ ही झूट मिले,
हार्दिक बधाई
सुन्दर भावों से सजी इस रचना के लिए बधाई स्वीकार करें संजीव जी .
आत्मान्वेषण से ही परम की प्राप्ति का आधार तय होता है. भाव-पक्ष से समृद्ध रचना है.
बधाई.
अब सकून ही सकून है .. बहुत अच्छे संजीव जी|
bekar ke kaam karenge , kuch nahi milega.
sakoon mil gaya,
badhai.
अच्छी रचना संजीव जी, प्रयास करते रहिये, और भी बढ़िया लिख सकते है, बधाई स्वीकार करें |
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