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ओ बी ओ का नव रूप ..

कितने वक़्त के बाद आई यहाँ ..

जैसे कोई अपनों के बीच फिर आये ..
उमड़ते घुमड़ते विचारों की गठरी ..
बाँध- ढो के  साथ साथ ले आये ..

बदला कुछ नहीं ,फिर भी बदल गया है सब ..
एक नयी रंगत और एहसास में रंग गया है अब ..
कितने नए चेहरों की है आवाजाही ..
नए विचारों को अपने साथ ले आये ...

दौर सा जैसे गुज़र गया कोई ..
एक नया दौर आगया है अब ..
नए कलेवर में कुछ मज़ा ही अलग सा है ..
खुशबू तेज़ इतनी की हम चले आये ...


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Comment

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Comment by Lata R.Ojha on March 4, 2012 at 6:14pm

आदरणीय मापतपुरी जी ,जिनके दिल नहीं बदलते वोही तो सच्चे मित्र होते हैं न ..ऐसे मित्रों को पा भला कौन अपने भाग्य को नहीं सराहेगा :) आपका आभार ..

Comment by satish mapatpuri on March 4, 2012 at 5:27pm
स्वागत है लता जी ................ OBO का रूप - रंग बदला है , OBO के मित्रों का दिल  नहीं बदला ........ आपके आने का शुक्रिया
Comment by Lata R.Ojha on March 4, 2012 at 3:52pm

आदरणीय प्रदीप कुमार जी आपकी बात से मैं भी सहमत हूँ क्योंकि ये मेरा स्वयं का अनुभव है..aabhaar   :)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 4, 2012 at 3:51pm

आदरणीया लताजी, आपकी ही नौका का मैं भी एक सहचर हूँ. .   :-))))

Comment by Lata R.Ojha on March 4, 2012 at 3:49pm

 आपका बहुत बहुत धन्यवाद गणेश जी :)

Comment by Lata R.Ojha on March 4, 2012 at 3:47pm

आदरणीय सौरभ जी ,मैंने  ओ बी ओ  में आकर आप सभी  से बहुत कुछ सीखा है आगे भी यूंही आशीर्वाद मिलता रहेगा ऐसी आशा है .आभार  :)

Comment by Lata R.Ojha on March 4, 2012 at 3:36pm

आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय अरुण जी :)

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 4, 2012 at 2:24pm

obo nishchit roop se sarvshresta hai. yahan sikhne ko milta hai vo bhi prem se. jai obo , jai bharat 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 4, 2012 at 12:58pm

रूप अवश्य नया है पर आत्मा वही है :-) 

आने के साथ ही इस खुबसूरत रचना की प्रस्तुति मनोरम लगा, बधाई स्वीकार हो, 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 4, 2012 at 11:04am

माननीय लताजी, आपकी संवेदनशीलता को नमन. नवविकास और निरंतर प्रगति प्रकृति का सनातन चलन है. ओबीओ के नव कलेवर पर गर्व की अनुभूति होना आपकी आत्मीय संलग्नता का परिचायक है.

इस रचना के परिप्रेक्ष्य में यदि साझा करूँ तो इस पटल पर के सभी नये सदस्य ओबीओ की एक मंच के तौर पर साहित्यिक समाज में उदार स्वीकार्यता का परिचायक हैं. यह अवश्य है, लताजी, नये सदस्य अपने साथ अपनी पृष्ठभूमि की वैचारिकता भी लाते हैं जो सकारात्मक हुई तो हमारे लिये मार्गदर्शक हुआ करती है.  अन्यथा एकदम से नये होने के कारण वे अनगढ़पन भी ले आते हैं जोकि एकदम से व्यावहारिक भी है. परन्तु, इस मंच की सकारात्मक परिपाटियों और उच्च व्यवहार के मानकों पर कसना हम सभी का अग्रजों का नैतिक धर्म है.

आपकी प्रस्तुत रचना के स्वर में स्वर मिलाते हुए हम सभी इस नव गति को सादर सम्मान दें.

सादर

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