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जिंदगानी में अगर होली, नहीं तो क्या मज़ा.
गर नशे में भाँग की गोली, नहीं तो क्या मज़ा.

मानता त्यौहार हूँ, है भजन पूजन का दिन,
पर वोदका की बोतलें खोली, नहीं तो क्या मज़ा.

टेसुओं गुलमोहरो के रंग से मत रंगिये,
दो बदन में कीचड़ें घोली, नहीं तो क्या मज़ा.

छुप के गुब्बारे भरे, रंग फेकते बच्चे यहाँ!
खुल के रंगी चुनरे-चोली, नहीं तो क्या मज़ा.

रोकने से रुक गए क्योँ हाथ तेरे रंग भर,
भाभीयो ने गालियाँ तोली, नहीं तो क्या मज़ा.

मिल रहे हैं सब गले, एहसान जैसे कर रहे,
गर जबाँ पे प्यार की बोली, नहीं तो क्या मज़ा!

अपने घर में तो सभी, रंगते मगर 'राकेश' ऐ!
चौक-चौबारो में रंगोली, नहीं तो क्या मज़ा.

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Comment by वीनस केसरी on March 23, 2012 at 12:57pm

वाह होली की सुन्दर झांकी पेश की है आपने

लाजवाब दृश्य पैदा कर दिए

बधाई

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 14, 2012 at 10:33am

महिमा जी, धन्यवाद.

Comment by MAHIMA SHREE on March 14, 2012 at 10:25am
मिल रहे हैं सब गले, एहसान जैसे कर रहे,
गर जबाँ पे प्यार की बोली, नहीं तो क्या मज
बहुत खूब.........बधाई.....क्या बात है...राकेश जी
Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 10, 2012 at 8:56pm
मान्यवर प्रदीप जी एवं वहीद भाई, आपकी दाद मिली रचना का महत्व बढ़ गया :) धन्यवाद.
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 10, 2012 at 6:50pm

मिल रहे हैं सब गले, एहसान जैसे कर रहे,
गर जबाँ पे प्यार की बोली, नहीं तो क्या मज़ा!

प्रिय राकेश जी, होली के त्यौहार की खासियत पर आप कि यह ग़ज़ल बड़ी भाई| बहुत बढ़िया| वाह!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 9, 2012 at 4:20pm

गर जबाँ पे प्यार की बोली, नहीं तो क्या मज़ा!

अपने घर में तो सभी, रंगते मगर 'राकेश' ऐ!
चौक-चौबारो में रंगोली, नहीं तो क्या मज़ा.

vah bhai vah bahi na hui to kya maja.  very good. shubh holi

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