For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चढ़ल जवानी कै उदल जब,देहिया गढ़ के ऊपर नाय।
नैना यकटक देखन लागे,पुरवा चले देह घहराय॥
चन्द्रमुखी जब तिरछा ताकै,तन के आरपार होइ जाय।
मारै मुस्की जब धीरे से,दिल कै टूक-टूक उड़ि जाय॥
उड़ै दुप्ट्टा जब कान्हे से,मानौ दुइ गिरिवर बिलगाय।
देख के गोरिक भरी जवानी,लरिके मंद-मंद मुस्काय॥
आओ पंचो प्यार कै आल्हा,सुनि लौ आपन कान लगाय।
अइसन मौका फिर जिन्गी में,शायद मिलै न कब्भो आय॥
जेका यह जिन्गी में कब्भो,प्यार के रोग लगा है नाय।
मानों वै मानो कै जोनी,आपन विरथा दिहिन गवाय॥
दादा माइ मिलैं जनमतै,गोरिया मिलै जनमतै नाय।
जब्बै भइय्या मौका पाओ,चउवा छक्का मारौ जाय॥

Views: 1061

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 14, 2012 at 6:45am
आभार आदरणीय वीनस जी।ये गुरुजनों का आशीर्वाद है।
Comment by वीनस केसरी on March 13, 2012 at 11:57pm

लयात्मकता की जो तारीफ़ की जाये कम है

Comment by वीनस केसरी on March 13, 2012 at 11:56pm

दादा माइ मिलैं जनमतै,गोरिया मिलै जनमतै नाय।
जब्बै भइय्या मौका पाओ,चउवा छक्का मारौ जाय॥

सुन्दर उपदेश है अमल में लायेंगे :)

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2012 at 11:32pm
'उधुवे प गरई विन्देसर भाई धे लेलन' का मैं मतलब नहीं समझा बागी जी।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 13, 2012 at 10:16pm

आभार सौरभ भईया, कन्फ्यूजन दूर हुआ.

भाई विन्देश्वरी जी, बात बताने से ही तो बात बनती है, वैसे आप कह रहे है तो नहीं कहूँगा, किसी से भी नहीं कहूँगा कि "उधुवे प गरई विन्देसर भाई ध लेलन" :-))))))))

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2012 at 9:22pm
बहुत गजब रचा है आपने बागी जी।
एक बात और जब रचना देशज भाषा में होती है तो लय के अनुसार शब्दों को लघु-दीर्घ किया जा सकता है।अगर इस कथ्य पर आप विचार करें तो आल्हा के लय और मात्रा में जो थोड़ी सी कमी या गड़बड़ी सी लग रही है वह दूर हो सकती है।(ये मेरा मानना है।बाकि हमारे गुरुजन तो हैं ही हमें प्रबोध देने के लिए।)और आपको सही बता दूं आपके और सौरभ सर के कहने के पहले मैं यह भी नहीं जानता था कि आल्हा में मात्राएं कितनी होती है।लेकिन किसी से कहना नही बागी जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 13, 2012 at 9:22pm

आप सही हैं भाई गणेश जी. आल्हा के चरण १६-१५ की मात्रा में होते हैं.  विषम चरण में १६ और सम में १५ मात्राएँ.

कुछ पाठकों द्वारा 'आल्हा छंद पर जानकारी न होना' लिखने के एवज में मैं छंद पर लिखने के क्रम में एक पंक्ति ही गलत लिख बैठा या छोड़ बैठा.  लिखना था प्रत्येक विषम चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं और सम में पन्द्रह, जहाँ सम चरण का अंत गुरु-लघु से होता है. 

भूल की तरफ़ याद दिलाने के लिये हार्दिक आभार.   विन्ध्येश्वरी जी ने भी तो प्यार का आल्हा  सुनाया है न ! ..   :-))))


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 13, 2012 at 8:55pm

भाई विन्देश्वरी जी, आपने बहुत ही बढ़िया आल्हा पर काम किया है, आपमें स्वर की पकड़ है जिससे यह रचना मात्राओं पर लगभग लगभग फिट बैठ रही है, "ओ बी ओ लाइव महाउत्सव" अंक-१२ में जिसका विषय "बचपन" था मैंने भी आल्हा पर प्रयास किया था किन्तु मैं मात्रा १६-१५ लेकर चला था, किन्तु जैसा कि सौरभ भईया ने कहा कि १६-१६ मात्राएँ होती है तो मुझे कुछ कन्फ्यूजन हो रहा है, बहरहाल बधाई स्वीकार करे बंधू |

आल्हा पर मेरे प्रयास को यहाँ क्लिक कर देखा जा सकता है ....

नमूने के तौर पर दो बंद ....

आँख खुली त माँ नहीं देखा,
समय दिया चलना सिखलाय |

टूटी छान बाप औ बेटा,
खाए कभी भूखे सो जाय |

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2012 at 8:28pm

गुरू जी(माननीय सौरभ पांडेय सर के लिए) मुझे तकनीक फकनीक कुछ भी मालुम नहीं गुरू की कृपा से ये सम्भव हो सका।
और आपने ने यह कहा कि मैंने वीर रस को नर्मी दिया है,नहीं गुरुदेव मैंने शृंगार रस को गर्मी दिया है।(बुरा मत मानना गुरूदेव)
और आपने कहा कि 'हम भी चौवा-छक्का मारें' तो गुरू जी (कविवर कुमार विश्वास जी के शब्दों में)प्रेम एक ऐसी दवा है जो एक्सपायरी डेट के बाद भी काम करती है।डोंट वरी एंड इंज्वाय इवरी मूवमेंट।हा.....हा.....हा......हा......हा......

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 13, 2012 at 8:15pm
आदरणीय कुमारी जी(मुझे आपका नाम लेना बुरा लगता है कारण कि आप मुझसे वरिष्ठ है लेकिन आपको कहूं क्या?इसीलिए कुमारी जी से काम चलाता हूं बुरा मत मानना)आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service