झर झर झरता झीना झीना
जीवन जल है .
फाहा फाहा फहरें फर फर
साँसें छल है .
मह मह मतिभ्रम में मानव मन
विकट विकल है .
नूपुर नवल नवनील नीरवता
आशा कल है .
उन्मत्त ऊर्जा उर उर्ध्वाधर
रक्त प्रबल है .
क्षमा क्षरण क्षय क्षितिज क्षुब्धवत
कैसा हल है .
अदम आदमी आदम अदभुत
स्नेह अटल है .
सृजन सुफल सृष्टि संश्लेषित
श्रेष्ठ सरल है .
पुष्प पलाश प्रेममय पाश
तलहटी तल है .
विदा विलोम विपुल विभ्रम वश
शाश्वत फल है .
- अभिनव अरुण
(13032012)
Comment
hardik abhaar adarniy seema ji !!
फीचर्ड ब्लॉग हेतु बधाई
हार्दिक आभार आदरणीय श्री राजीव कुमार झा जी !!
बहुत सुन्दर रचना है,अभिनव जी.
आदरणीय श्री अरुण कुमार पाण्डेय जी ..क्या चमत्कार कर डाला है शब्दालंकार से ..१,३,५,७,९,११,१३,१५,१७,१९, पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार ( अनुप्रास (Alliteration) - When a consonant word repeats serially more than once.) का अभूतपूर्व प्रयोग ..कविता लयबद्ध इस प्रकार आगे बढती है मानो तेल की धार ...जीवन , सांसें , मन , आशा सभी कुछ समाया है ...वाह ..आत्मा तक पहुंच गए हैं आप ..पाठक की ..सादर नमन ..व बधाई .
आदरणीय श्री विवेक जी आपकी उत्साह वर्द्धक टिप्पणी के लिए आभारी हूँ !!
adbhut. bahut kuchh spasht karti hai rachna. jaisa ki sbne kaha, anupras alankar ka uttam prayog.
hardik badhai.
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