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(१)

जागरण की

वेला में सो रही है

सारी दुनिया|

(२)

मस्त आँखों में

ख़्वाब जिन्दा है साकी

निगहबानी|

(३)

जा रहा हूँ मैं

आँख में अपने ले

गरम आंसू|

(४)

तेरी खातिर

देख तो लाया दर्द

का मलहम|

(५)

जब नहीं है

काम मुझसे तेरा

अजनबी मैं|

(६)

इश्क की बातें

फिर कभी कहना

आज रोने दे|

(७)

तेरे होंठो पर

नाम किस किस के

आज आते हैं|

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Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2012 at 11:21am

मैं  तो आनंद ही ले  रहा हूँ. बधाई. 

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 14, 2012 at 4:47pm

प्रिय मित्र वाहिद जी,आदरणीय अभिनव भाई और स्नेही बागी जी..आप सभी लोगों को तहे दिल से शुक्रिया|

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 14, 2012 at 4:44pm

टूट ही जाती,

कोशिशें कर के भी,

ढेरों आशाएं|

आदरणीय बागी जी, उत्साहवर्धन एवं गलतियों पर ध्यान देने के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ|वस्तुतः मैं हिंदी भाषा में ही कुछ लिख लेता हूँ और आज तक भारतीय विधाओं में ही लेखन का प्रयास किया है|आदरणीय आशा जी के हाइकू देखे तो ५,७,५ की गुणा गणित को ध्यान में रखकर जो मन में आया सो लिख दिया|आपका मार्गदर्शन पाकर अब मैं और अच्छा लिख पाऊंगा ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है और मैं चाहूँगा की आप मेरी प्रत्येक रचना पर अपना मत व्यक्त करे ताकि छिद्रों का निवारण हो सके|वैसे  ''निज कवित्त कही लाग न निकी,रुचिर होय अथवा अति फीकी'' वाली मानसिकता तो होती ही है|

Comment by Abhinav Arun on March 14, 2012 at 3:03pm

बहुत ख़ास है आपके हाइकू श्री मनोज -

जब नहीं है

काम मुझसे तेरा

अजनबी मैं|

क्या बात है बहुत अच्छा हार्दिक बधाई आपको !!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 14, 2012 at 2:10pm

हाइकु ३ व् ६ शिल्प पर खरे है, ज्ञात हो कि केवल ५-७-५ वर्ण में वाक्य को खंडित करना ही हाइकु नहीं है अपितु तीनो चरण स्वतंत्र होने चाहिए । प्रयास पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 14, 2012 at 12:16pm

हाइकू विधा में अच्छा प्रयास है मनोज भाई.. :-)

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