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अरे शिकवा नहीं कोई,शिकायत क्या करू तुझसे?

वली है तू सनम मेरा,इबादत की इजाजत दे||१||


बहुत अब देख ली दुनिया,नहीं अब देखना कुछ भी|

लहर उठती नहीं कोई कयामत की इजाजत दे||२||


मुझे खामोश करने पर अमादा है सियासत क्यों?

मेरा दिल भी धडकता है,मुहब्बत की इजाजत दे||३||


मेरी आँखों में पानी की नहीं बूंदे, है चिंगारी|

हुए हैं लोग मुर्दा तो फिर आतस की इजाजत दे||४||


चला था कारवां लेकर मेरा रहबर ही रहजन था|

नहीं है मानना अब कुछ तू आफत की इजाजत दे||५||


मेरे भी पास खंजर है, तेरे भी पास खंजर है,

जो लड़ना है तो खुल के आ,अदावत की इजाजत दे||६||


बहकते है बशर क्या खुद फ़रिश्ते नौजवानी में|

गिला है क्यों तुझे मुझसे,सदाकत की इजाजत दे||७||

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Comment

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Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 2, 2012 at 11:13pm

छंदबद्ध और सरलतम निकले हैं उदगार|

गुरुवर का आशीष है,भाई को आभार|

भाई आशीष जी आपकी काव्यात्मक प्रतिक्रिया को सादर नमन|

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 2, 2012 at 11:09pm

आदरणीय शाही जी,

मैं तो आपके कथन शक्ति का कायल हूँ,यह बात अलग है की मैं अधिकतर तरन्नुम में लिखता हूँ और आप अधिकांशतः तहद में लिखते है फिर भी आपके प्रत्येक आलेख में भाषा का वाह प्रवाह है जो आपके आलेखों को एक गद्यगीत से थोडा सा भी कमतर नहीं होने देते|भाषा से मेरा हमेशा लगाव रहा है इसमें प्रतिभा जैसी कोई बात नहीं|आपका हार्दिक आभार|विलम्बित प्रतिक्रिया के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ|

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 2, 2012 at 11:04pm

धन्यवाद प्रदीप सर|

आपके प्रोत्साहन की सदैव प्रतीक्षा रहेगी|देर के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ|

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 2, 2012 at 11:02pm

आदरणीया सीमा जी,

आपके प्रतिक्रया व प्रोत्साहन का शुक्रिया|देर के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ|धन्यवाद|

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 2, 2012 at 11:00pm

आदरणीय सौरभ सर..

मैं अभिभूत हुआ..बहुत बहुत धन्यवाद|देर से प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ|

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 2, 2012 at 10:58pm

भाई विन्ध्येश्वरी जी आपकी प्रतिक्रिया पर बहुत देर के बाद नजर पड़ी, इसके लिए ह्रदय से क्षमाप्रार्थी हूँ|आपकी स्नेहसिक्त प्रतिक्रया का हार्दिक आभार|

Comment by आशीष यादव on April 2, 2012 at 5:01pm
अति सुन्दर अशआर है, रक्खे गहरे भाव।
कथ्य शिल्प सुन्दर बहुत, मुख से निकले वाव॥
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2012 at 11:45am

मैं  तो आनंद ही ले  रहा हूँ. बधाई. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 14, 2012 at 11:19pm

कहा तो फुटकर अश’आर मगर शे’र संकलन बनाते हैं.

बढिया प्रयास के लिये हार्दिक बधाई.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 14, 2012 at 5:53pm
आदरणीय मयंक जी लाजवाब पक्तिं है बहुत अच्छी लगी-
'मेरे भी पास खंजर है तेरे भी पास खंजर।
जो लड़ना ते खुलके आ अदावत की इजाजत दे।'
फिल्हाल पूरी रचना के लिए बधाई।

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