दीनो धरम,ईमान के हाइल हैं यहाँ पर|
मैं इल्म किसे दूँ,सभी जाहिल हैं यहाँ पर|
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नादान बशर रो रहा जिस शख्स के आगे,
वह शख्स कहीं और है,गाफिल है यहाँ पर
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मैं अपना सारा जोर अमल में हूँ ला रहा,
कुछ बात है जो सिफ़र ही हासिल है यहाँ पर|
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साकी उसूल तेरा तिजारत है मयकदा,
मयख्वार मेरे वास्ते कामिल हैं यहाँ पर|
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आतिश है,कफस,आशियां है,बाग है,बुलबुल,
सब एक दूसरे के मुक़ाबिल है यहाँ पर|
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अंदर से टूटे लोगों की जमात है दुनिया|
बस कहने के ही वास्ते महफ़िल है यहाँ पर|
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तू डर रहा मयंक क्यों पैगामे अजल से,
जल्लाद है आलम,सभी कातिल हैं यहाँ पर|
Comment
भाई मनोज जी, आपकी इस गंभीर प्रस्तुति को मरी बधाई.
मैं अपना सारा जोर अमल में हूँ ला रहा,
कुछ बात है जो सिफ़र ही हासिल है यहाँ पर|
बहुत अच्छे.. .
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल मनोज जी,
आदरणीय हबीब भाई...
मनोबल बढ़ाने वाली उत्साहजनक टिप्पडी हेतु हार्दिक बधाई....सादर वंदे
वाह! वाह! बहुत सुन्दर ग़ज़ल मयंक भाई...
हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीय जवाहर जी,योगराज सर,श्रद्धेय शाही जी,प्रिय अग्रज,संदीप भाई,आदरणीया राजेश जी,प्रदीप सर,आशीष भाई और राकेश भाई ...आप सभी की सराहना का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ|सादर वंदे
वाह वाह श्री मनोज भाई, बहुत खूब! शानदार! दाद कुबूल करें.
rachna feature hone par badhai swikar karn.
उम्दा ग़ज़ल,
snehi manoj ji, sadar. sare ke sare ashaar achhe, kise sabse bahiya kahoon, vah vah.
main fankar nahi fan ka rasiya hoon
sagar pila de in boondon se kya hansil
ek najar ko tarsta pradip dware pe baitha hoon....tukbandi pesh hai. badhai.
bahut sundar ghazal bani hai.Manoj ji.
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