कालबाह्य हो गयी अचानक सिर से वंचित चोटी है|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||
मृतिका पात्रों का सोंधापन,
स्नेहपूर्ण परसन,प्रक्षालन|
मधुमय मंगल गीतों के संग-
मिष्ट अन्न,दुर्लभ आस्वादन|
चन्दन वासित,कंचन काया सुबक,सुबक कर रोती है|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||
नहीं वृषभ जिनके कन्धों पर,
जुएं जुते रहते थे सुन्दर|
इन्ना,इन्ना,बर्रा,बर्रा,
ना बाबा,ना बाबा का स्वर|
प्राणाधिक प्रियतम यंत्रों ने,सारी धरती जोती है|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||
दूरभाष की नीरस बातें,
मिटीं दूरियां रिश्ते,नाते,
जिसको पढ़ प्रेमाश्रु छलकते,
रोमांचित हो वदन लजाते|
मसि कागद की परम्पराएँ,अपना गौरव खोती हैं|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||
वेग वही,संवेग वही,
आवेग वही,उद्वेग वही है|
केवल परिभाषाएं बदली हैं,
परिधि नहीं पर केन्द्र वही है|
इन आँखों में जल ही जल है,उन आँखों में मोती है|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||
Comment
मृतिका पात्रों का सोंधापन,
स्नेहपूर्ण परसन,प्रक्षालन|
मधुमय मंगल गीतों के संग-
मिष्ट अन्न,दुर्लभ आस्वादन|
चन्दन वासित,कंचन काया सुबक,सुबक कर रोती है|..
मयंक जी हमारे धरोहर-प्रथाओं परम्पराओं की एक झांकी ..उसे जीवंत करते हुए ...गाँव के दर्शन हुए ... ..जय श्री राधे
लाजवाब मनोज भाई| जिस कौशल के साथ आपने आधुनिक होते समाज की विद्रूपताओं को रेखांकित किया है वह निश्चय ही सराहनीय है| बहुत ही सुन्दर गीत| बधाई|
आभार डॉसाहब, सादर वंदे
सुंदर कविता .
आदरणीय प्रदीप सर...उत्साह बढ़ाने वाली प्रतिक्रया के लिए आपका कोटिशः अभिवादन
snehi manoj ji. sadar
इन आँखों में जल ही जल है,उन आँखों में मोती है|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||
bahut shandar shabd, bhav rachna aur prastutikaran. bahut khoob. badhai.
इतनी जल्दी प्रकाशित भी हो गया...भाई वाह मजा आ गया
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