इश्क़ की बात चली
रात आँखों में जली
————
मौजूदगी तेरी हर लम्हा मौजूद रहे
तू साथ हो न हो, साथ बावजूद रहे
ख़यालों में गुज़रा ये दिन सारा
शाम यादों में ढली
इश्क़ की बात चली..
————
एक तमन्ना थी इस दिल में भी
आएंगे वो दिल की महफ़िल में भी
बन सकी न फूल तमन्ना की
थी जो मासूम कली
इश्क़ की बात चली..
————
मैं भटकना भी जो चाहूँ तो कहाँ जाऊँगा
हर सू, हर शै में तुझे ही पाऊँगा
बढ़ जाएँ क़दम उस जानिब जो हैं
तेरा कूचा-ओ-गली
इश्क़ की बात चली..
————
सिर्फ़ एक बार मुख़ातिब हुई आवाज़ तेरी
है बड़ी यादगार मेरे लिए एक वो घड़ी
ज़हन में उतर गई इतनी मीठी
जैसे मिसरी की डली
इश्क़ की बात चली..
Comment
आभार वीनस जी,
यदि कुछ अनुभवों पर आधारित हो और उसे उपयुक्त शब्द मिल जाएँ तो अच्छा लगता है| पुनश्चः धन्यवाद के साथ,
प्रिय राकेश भाई,
शुक्रिया तो कहूँगा ही आपके प्रोत्साहन से और भी अच्छा करने का बल मिलता है|
संदीप भाई, बहुत सुन्दर गीत प्रस्तुत किया है आपने, हर एक छन्द उत्तम है, बहुत बहुत बधाई.
सिर्फ़ एक बार मुख़ातिब हुई आवाज़ तेरी
है बड़ी यादगार मेरे लिए एक वो घड़ी
ज़हन में उतर गई इतनी मीठी
जैसे मिसरी की डली
इश्क़ की बात चली..
यादों की मीठी चाशनी और सुन्दर शब्द संयोजन
वाह वाह वाह
गुरुवर,
सादर प्रणाम,
कुछ बातें जैसी होती हैं वैसी ही अच्छी होती हैं| हमारे यहाँ जैसे मुर्दे गाड़े नहीं जाते जला दिए जाते हैं ताकि उन्हें पुनः उखाड़ा न जा सके वैसी ही ये बातें होती हैं| हाँ पवित्र अस्थियों को को अवश्य विचारों के सुन्दर प्रवाह में छोड़ दिया जाता है कि वो अनंत में विलीन हो जाएँ| उन लहरों को देख कर प्रसन्नता तो होगी मगर उस जलाए जाने दृश्य को याद करना कहीं से भी सुखद नहीं कहा जा सकता| लिखने वाला कभी असलियत तो कभी केवल कल्पना ही उपयोग करता है| मैं इस अति सुंदर मंच पर किसी अन्य कारण के स्थान पर साहित्य के प्रति अपने अनुराग के कारण और अपने इस कौशल को और तराशने के लिए आया हूँ| निरंतर अद्यतन रहना ही बेहतर जीवन का सूचक है| इबारत लोग पढ़ तो लेते हैं मगर उनके मायने खुद ही समझने पड़ते हैं| कभी-कभी तो लिपि दूसरी होने के कारण दिक्कतें भी आ जाती हैं| तो उसका तो एक ही उपाय है उस लिपि को सीखना| मुझे विश्वास है कि आप मेरी बात को समझ गए होंगे क्यूंकि इस विधा में आप निष्णात हैं| विनयावनत,
इश्क़ की बात चली. anjam talk ja pahunchegi.
sundar prastuti mahoday jii. badhai.
आदरणीय राजीव जी,
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभारी हूँ|
आदरणीय शशिभूषण जी,
सादर नमस्कार,
इस मंच पर आप जैसी साहित्यिक हस्ती की उपस्थिति से अत्यंत हर्ष हो रहा है| आपकी अनुभवी एवं पारखी नज़रों ने पहचान लिया कि यह वास्तव में एक गीत कम अपितु एक अनुभव अधिक है| इससे पता चलता है कि आप कितनी गहरी समझ और अंतर्दृष्टि रखते हैं| आपका आशीर्वाद मिला इसके लिए तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ|
गुरुवर को सादर प्रणाम,
मैं स्पष्ट समझ रहा हूँ कि आप का इशारा किस ओर है| यह गीत दरअसल वास्तविक अनुभव पर आधारित है जब कि उस तस्वीर के साथ चस्पा पंक्तियाँ विशुद्ध रूप से कल्पना हैं अतः यहाँ उस तस्वीर का कोई काम भी नहीं था| ये तो आपने पूछा इसलिए मैंने इतना खुल कर बता दिया अन्यथा आप जानते ही हैं कि मैं कौन सी खुली किताब की तरह हूँ| आशीर्वचनों से सिंचित करने हेतु हार्दिक आभार,
आदरणीया नीरजा जी,
आप इस अदने से गीत को अनुभव कर सकीं यह मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं| आभार आपका,
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