लघु कथा : हाथी के दांत
बड़े बाबू आज अपेक्षाकृत कुछ जल्द ही कार्यालय आ गए और सभी सहकर्मियों को रामदीन दफ्तरी के असामयिक निधन की खबर सुना रहे थे. थोड़ी ही देर में सभी सहकर्मियों के साथ साहब के कक्ष में जाकर बड़े बाबू इस दुखद खबर की जानकारी देते है और शोक सभा आयोजित कर कार्यालय आज के लिए बंद करने की घोषणा हो जाती है | सभी कार्यालय कर्मी इस आसमयिक दुःख से व्यथित होकर अपने अपने घर चल पड़ते है | बड़े बाबू दफ्तर से निकलते ही मोबाइल लगा कर पत्नी से कहते है "सुनो जी तैयार रहना मैं आ रहा हूँ, आज सिनेमा देखने चलना है"
Comment
आदरणीय बागी जी,
ग़ज़ब का कटाक्ष किया आपने! बहुत ख़ूब..
सामाज की यही हालात रही है कि हाथी के दांत खाने को और तथा दिखाने को और। पर अब हालात बदल गए है जनता जागरुक हो गई है। इसलिए अब हाथी के दांत की कहावत गुजरे जमाने की वात हो गई है। पर लधु कथा बढिया है।
लाल बिहारी लाल,नई दिल्ली-44
aadarniya bagi ji saadar pranaam......... yah samaaj ka kadhwa sach hai. kathni aur karni me jamin aasma ka antar hai.
बहुत बहुत आभार आदरणीया नीरजा अरोरा जी ।
आदरणीय प्रदीप भाई साहब , कब क्या और कैसे कोई विचार घर कर जाए कहना मुश्किल है, यह लघु कथा भी कुछ उसी तरह का उदाहरण है जो मेरे निमित पोस्ट हो पाया है, सराहना हेतु कोटिश : आभार |
आदरणीया डॉ साहिबा, प्रणाम और आभार , आप इस कथा के आत्मा तक पहुची , शुक्रिया आपका |
ye hakikat main hota hai, katha nahi sachi katha hai.
badhai. patal par rakhne hetu. mahodaya ji saadar abhivadan ke saath swikar karne ka kasht karen.
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