मुक्तिका
संजीव 'सलिल'
*
लिखा रहा वह, हम लिखते हैं.
अधिक देखते कम लिखते हैं..
तुमने जिसको पूजा, उसको-
गले लगा हमदम लिखते हैं..
जग लिखता है हँसी ठहाके.
जो हैं चुप वे गम लिखते हैं..
तुम भूले सावन औ' कजरी
हम फागुन पुरनम लिखते हैं..
पूनम की चाँदनी लुटाकर
हँस 'मावस का तम लिखते हैं..
स्वेद-बिंदु से श्रम-अर्चन कर
संकल्पी परचम लिखते हैं..
शुभ विवाह की रजत जयन्ती
मने- ज़ुल्फ़ का ख़म लिखते हैं..
संसद में लड़ते, सरहद पर
दुश्मन खातिर यम लिखते हैं.
स्नेह-'सलिल' में अवगाहन कर
साँसों की सरगम लिखते हैं..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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Comment
सुन्दरतम है बनी मुक्तिका
ईश कृपा से हम लिखते हैं
स्वागत हे गुरुदेव आपका
मनभावन हर दम लिखते हैं
सादर
आपकी गुणग्राहकताको नमन.
जग लिखता है हँसी ठहाके.
जो हैं चुप वे गम लिखते हैं..
तुम भूले सावन औ' कजरी
हम फागुन पुरनम लिखते हैं..
पूनम की चाँदनी लुटाकर
हँस 'मावस का तम लिखते हैं
बहुत खूब रही मुक्तिका आप के ..सच में कितना मन भावन लिखते हैं ..भाव प्रधान ..सुन्दर प्रस्तुति ..जय श्री राधे
सर उत्कृष्ट रचना पर बधाई स्वीकार करें
संजीव जी इस भाव प्रधान श्रेष्ठ मुक्तिका के लिए तहेदिल से बधाई स्वीकारें
तुम भूले सावन औ' कजरी
हम फागुन पुरनम लिखते हैं..
स्वेद-बिंदु से श्रम-अर्चन कर
संकल्पी परचम लिखते हैं..
क्या सुन्दर सृजन है आदरणीय आचार्य जी! निःशब्द हूँ प्रशंसा क्या कर पाऊंगा| हार्दिक बधाई!
पूनम की चाँदनी लुटाकर
हँस 'मावस का तम लिखते हैं..
BAHUT SUNDAR ABHUVYAKTI AADARNIYA SALIL SAHAB, SADR BADHAI.
संसद में लड़ते, सरहद पर
दुश्मन खातिर यम लिखते हैं.
स्नेह-'सलिल' में अवगाहन कर
साँसों की सरगम लिखते हैं..
बहुत श्रेष्ट व्यंजना आपकी,
सचमुच ही बादम लिखते हैं|
आभार, सादर वंदे
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