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स्वार्थ

(मात्रिक छंद)
उल्लाला = १५,१३ मात्रा
(मैथिली शरण गुप्त जी ने इस छंद पर कई रचनाएँ लिखी है)

(तुम सुनौ सदैव समीप है,जो अपना आराध्य है.)

*******************************************************
नहीं बड़ा परमार्थ से अब , धर्म है इस जहान में.
कभी स्वार्थ  टिक पाता नहीं,किसी आत्मा महान में.


स्वारथ में जो प्रतिपल रहा ,कलंक है नर जाति पर.
आराध्य वही मानव जिसे,न फ़िक्र जाति विजाति पर.


है नाम पुनीत दधीच का,जन हित में जीवन दिया.
रानी थी एक झाँसी हित,कुर्बां कर यौवन दिया.


 कर चयन स्वारथ की सीढ़ी , जो कोई आगे बढ़े.
प्रभु न चलूँ पद चिन्ह उसके,जो भी यह  सीढ़ी चढ़े.

  • शैलेन्द्र कुमार सिंह "मृदु'

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Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 1:15pm

श्री वाहिद सर सादर नमन, आप लोगों के बीच रहकर कुछ नया सीखने की कोशिश में रहता हूँ , आप का स्नेह मिलने से मन एक नयी उमंग आती है कुछ नया करने की और अच्छा करने की, उत्साहवर्धन के लिए आपका ह्रदय से आभार

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 1:12pm

आदरणीया राजकुमारी मैम आपकी प्रतिक्रिया से रचना को बल मिलता है सराहना हेतु कोटि कोटि धन्यवाद

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 6, 2012 at 1:04pm

प्रिय मृदु जी,

शिल्प पर आपकी गहन जानकारी देख कर असीम प्रसन्नता का अनुभव होता है| मानवता के प्रति समपर्ण के भाव लिए आपकी यह कृति बहुत ही सुन्दर बन पड़ी है| आपसे काफ़ी कुछ सीखने को भी मिलता है| हार्दिक बधाईयां!


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Comment by rajesh kumari on April 6, 2012 at 1:00pm

bahut achchi prernadaai sandesh parak rachna...badhaai.

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 10:57am

श्री अश्विनी कुमार जी उत्साह वर्धन के लिए कोटि कोटि धन्यवाद 

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 10:56am

आशीष जी सराहना के लिए ह्रदय से आभार

Comment by अश्विनी कुमार on April 5, 2012 at 11:27pm

अति सुंदर ,अच्छी शिल्प प्रधान कविता .......सादर आभार

Comment by आशीष यादव on April 5, 2012 at 10:47pm
Ek sundar अर्थोँ की मात्रिक छन्द। आपकी यह रचना अच्छी लगी।
बधाई
Comment by आशीष यादव on April 5, 2012 at 10:47pm
Ek sundar अर्थोँ की मात्रिक छन्द। आपकी यह रचना अच्छी लगी।
बधाई

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