किसका किसका हिसाब बाक़ी है,
जाने क्या क्या अज़ाब बाक़ी है......
नब्ज़ देखो अभी भी चलती है,
हसरते टूट गयीं जान अब भी बाक़ी है.....
दिलों के ज़ख्म हैं आँखों की राह रिसते हैं,
तुम समझते हो कि आँसू हमारे बाक़ी हैं.....
सुनो एक बात पूछनी थी, मगर रहने दो,
तुम को क्या पता एहसास कहाँ बाक़ी है.....
मेरे गुनाहों की फ़ेहरिस्त ज़रा लम्बी है,
खुदा सुना चुका सज़ा भगवान अभी बाक़ी है.....
याद से ले लो तुम्हारा जो कुछ निकलता हो,
फिर न कहना कि हमारा हिसाब बाक़ी है.....
फिर क़यामत के दिन बस हम होंगे और खुदा होगा,
मेरा तुमसे नहीं , उस से हिसाब बाक़ी है.....
Comment
सरिता जी ये रचना बहुत अच्छी लगी ! बधाई हो !!
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, नमस्कार, आपका बहुत धन्यवाद... मैं कोशिश करूँगी ...
आदरणीय कुशवाहा जी, नमस्कार,
फिर क़यामत के दिन बस हम होंगे और खुदा होगा,
मेरा तुमसे नहीं , उस से हिसाब बाक़ी है.....
kya baat hai. lekha shashtr bhi padhne lagin. kuch hisaab aese hote hain jo kabhi chukaye nahi ja sakte. badhai.
भवनाप्रधान उद्बोधन है, किन्तु ऐसे उद्बोधनों के लिये साधन को साध कर समर्थवान करना भी आवश्यक है. आपके कथ्य और प्रस्तुत अभिव्यक्ति की कहन आशान्वित करती हैं. सरिता जी, इस ड्यौढ़ी पर आप सहर्ष आयी हैं तो पूर्व प्रविष्टियों के प्रकार उनकी गठन की भी सुनें.
रचना प्रस्तुतिकरण हेतु बधाई.
जवाहर भाई, नमस्कार,
सतीश जी, धन्यवाद...
प्रिय महिमा जी नमस्कार,
राजीव जी नमस्कार,
भ्रमर जी, नमस्कार,
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