किसका किसका हिसाब बाक़ी है,
जाने क्या क्या अज़ाब बाक़ी है......
नब्ज़ देखो अभी भी चलती है,
हसरते टूट गयीं जान अब भी बाक़ी है.....
दिलों के ज़ख्म हैं आँखों की राह रिसते हैं,
तुम समझते हो कि आँसू हमारे बाक़ी हैं.....
सुनो एक बात पूछनी थी, मगर रहने दो,
तुम को क्या पता एहसास कहाँ बाक़ी है.....
मेरे गुनाहों की फ़ेहरिस्त ज़रा लम्बी है,
खुदा सुना चुका सज़ा भगवान अभी बाक़ी है.....
याद से ले लो तुम्हारा जो कुछ निकलता हो,
फिर न कहना कि हमारा हिसाब बाक़ी है.....
फिर क़यामत के दिन बस हम होंगे और खुदा होगा,
मेरा तुमसे नहीं , उस से हिसाब बाक़ी है.....
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फिर क़यामत के दिन बस हम होंगे और खुदा होगा,
मेरा तुमसे नहीं , उस से हिसाब बाक़ी है.....
सरिता जी सुन्दर गजल ...सच में उससे बड़े हिसाब बाकी हैं ...काश ये हम सब को याद रहे ..हम हिंदी वाले भी हैं कुछ उर्दू लफ्ज समझा दिया कीजिये
बहुत सुन्दर गजल,सरिता जी.
दिलों के ज़ख्म हैं आँखों की राह रिसते हैं, तुम समझते हो कि आँसू हमारे बाक़ी हैं.....
सुनो एक बात पूछनी थी, मगर रहने दो, तुम को क्या पता एहसास कहाँ बाक़ी है.....
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं.
याद से ले लो तुम्हारा जो कुछ निकलता हो,
फिर न कहना कि हमारा हिसाब बाक़ी है.....
फिर क़यामत के दिन बस हम होंगे और खुदा होगा,
मेरा तुमसे नहीं , उस से हिसाब बाक़ी है.....
नब्ज़ देखो अभी भी चलती है,
हसरते टूट गयीं जान अब भी बाक़ी है.....
बहुत खूब................. बधाई सरिता जी
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