For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अभिव्यक्ति - खामोश मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता !

अभिव्यक्ति - खामोश  मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता !

अपनों ने अगर पीठ पे मारा नहीं होता ,

दुनिया की कोई जंग वो हारा नहीं होता |

 

उनकी हनक से दौड़ने लगती हैं फ़ाइलें ,

रिश्वत  न दें तो काम हमारा नहीं होता |

 

है इश्क तो शक की दरो दीवार गिरा दो ,

बादल हो तो सूरज का नज़ारा नहीं होता |

 

चलती हुई कलम में इन्कलाब का दम है ,

शब्दों से खतरनाक शरारा नहीं होता |

 

हालात सिखा देते हैं कोहराम मचाना ,

खामोश  मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता |

 

बचना ज़रा की मिलते हैं  पैकिट में बंद लोग ,

भीतर के आदमी  का नज़ारा नहीं होता |

 

हर दौर में गैलीलियो को कैद मिली है ,

सच हर किसी की आँख का तारा नहीं होता |

 

उन छूटती साँसों को दो अपनों का प्यार भी ,

पेंशन की रकम ही से गुज़ारा नहीं होता |

 

तहजीब अदब और सलीका भी तो कुछ है ,

झुकता हुआ हर शख्स बिचारा नहीं होता |

 

हम भी नहीं हो जाते वही पीर कलंदर ,

गर सोच में ये मेरा -  तुम्हारा नहीं होता |

                   - अभिनव अरुण [15042012]

[ आत्मकथ्य :- साथियो !  लिखा ग़ज़ल सोच  कर ही है ; पर जानता हूँ यह उस्तादों की कसौटी पर शायद ही खरी उतरे | सो पहले खेद व्यक्त करता हूँ | इसे एक  कविता की तरह ही परखें - पढ़े - साहित्यिक  आनंद लें यही चाह है , बस | ]

 

Views: 893

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on May 16, 2012 at 1:21pm

परम आदरणीय श्री संपादक महोदय आपका स्नेह सर आँखों पर !! ऐसी टिप्पणियाँ मुझ जैसे नवोदितों को ऊर्जा देती है | सीखने का आनंद ऐसे माहौल में ही है |

इस समालोचना के द्वारा आपने इस ग़ज़ल को नयी ऊंचाई दी है |

हार्दिक आभार आपका !! आशीर्वाद मिलता रहे यही कामना है !!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 16, 2012 at 12:19pm

//अपनों ने अगर पीठ पे मारा नहीं होता ,
दुनिया की कोई जंग वो हारा नहीं होता | // अति सुन्दर - वाह.

//उनकी हनक से दौड़ने लगती हैं फ़ाइलें ,
रिश्वत न दें तो काम हमारा नहीं होता | // बिलकुल सत्य कहा.

//है इश्क तो शक की दरो दीवार गिरा दो ,
बादल हो तो सूरज का नज़ारा नहीं होता | // वाह वाह वाह वाह ! बेहद सुन्दर शेअर.

//चलती हुई कलम में इन्कलाब का दम है ,
शब्दों से खतरनाक शरारा नहीं होता | // क्या बात है - क्या बात है ! बहुत खूब.

//हालात सिखा देते हैं कोहराम मचाना ,
खामोश मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता | // हासिल-ए-ग़ज़ल शेअर, वाह . जवाब नहीं.

//बचना ज़रा की मिलते हैं पैकिट में बंद लोग ,
भीतर के आदमी का नज़ारा नहीं होता | // "पैकिट में बंद लोग" - लाजवाब ख्याल. .

//हर दौर में गैलीलियो को कैद मिली है ,
सच हर किसी की आँख का तारा नहीं होता | // बिलकुल सत्य कहा - वाह.

//उन छूटती साँसों को दो अपनों का प्यार भी ,
पेंशन की रकम ही से गुज़ारा नहीं होता | // दिल को छू गया यह शेअर, वाह वाह वाह.

//तहजीब अदब और सलीका भी तो कुछ है ,
झुकता हुआ हर शख्स बिचारा नहीं होता | // हासिल-ए-गजल शेअर, बाकमाल ख्याल और बेमिसाल अगायगी.  

//हम भी नहीं हो जाते वही पीर कलंदर ,
गर सोच में ये मेरा - तुम्हारा नहीं होता |// आय हय हय. लाजवाब शेअर. इस बहतरीन  ग़ज़ल के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें अरुण भाई जी.   

Comment by Abhinav Arun on May 6, 2012 at 1:57pm

हार्दिक रूप से आपके प्रति आभार श्री अजीतेंदु जी !!

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 6, 2012 at 12:35pm

हालात सिखा देते हैं कोहराम मचाना ,

खामोश  मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता |

बहुत बढ़िया पंक्तियाँ अरुण जी. बधाई.

Comment by Abhinav Arun on May 1, 2012 at 3:41pm

जय श्री राधे  आदरणीय श्री भ्रमर जी !! हार्दिक आभार ग़ज़लें आपको पसंद आयीं !!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 28, 2012 at 4:58pm

तहजीब अदब और सलीका भी तो कुछ है ,

झुकता हुआ हर शख्स बिचारा नहीं होता |

चलती हुई कलम में इन्कलाब का दम है ,

शब्दों से खतरनाक शरारा नहीं होता |

प्रिय अभिनव अरुण जी बहुत सुन्दर ...अच्छा सन्देश देती , सिखाती हुयी रचनाएँ ...जय श्री राधे .भ्रमर ५ 


Comment by Abhinav Arun on April 23, 2012 at 12:21pm

परम आदरणीय श्री प्रदीप जी सब आपके स्नेह का प्रभाव है जो थोडा कुछ लिख पा रहा हूँ सीखने  का क्रम जारी है सहयोग बना रहे !! आभार !!

Comment by Abhinav Arun on April 23, 2012 at 12:14pm

आदरणीया महिमा श्री जी हार्दिक आभारी हूँ जो ग़ज़ल आपको पसंद आई !!

Comment by Abhinav Arun on April 23, 2012 at 12:13pm
श्री राकेश जी हार्दिक धन्यवाद !!आप जैसे स्नेहिल साथी लिखने को प्रेरित करते रहते हैं आभार  !!
Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 21, 2012 at 11:11am

Bhai Arun ji, saadar, ham to hamesha se aapki gazal gayki ke kaayal rahe hian, aur punah aapne hamara man rakh liya, vah! bahut khub, man kar raha hai padhta hi rahun, saadar badhai

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service