Comment
इस देश में करोड़ों लोग इसी तरह का जीवन व्यतीत कर रहे है, और इस चक्रव्यूह से निकल नहीं पा रहे है है |
ऐसे लोगो की स्त्याकहानी को उजागर करती सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया महिमा श्री जी
'वो कभी आसमान की और देखता तो कभी हाथ में पकडे उन ८० रुपयों को. और फिर सहसा ही उसके पाँव कलाली की दूकान की तरफ मुड पड़े. जहाँ उसको मिलेगी उसके हर दुःख की दवा. वहां बैठ कर वो सूखी मछली के साथ पिएगा देसी ठर्रा और वादा करेगा अपने आप से कि कल फिर काम पर जाना है, पैसे जमा करने है और घर वालों की हरेक इच्छा पूरी करनी है. खैर, अभी तो हफ्ते दो हफ्ते का काम बाकी है कुछ न कुछ तो कर ही लेगा वो. '' इन पारिभाषिक लाइनों में कहानी का सम्पूर्ण सार-तत्व सन्निहित है और इन्ही में इस कहानी के शीर्षक की सार्थकता भी है ! बहुत सुन्दर भाव ! बधाई, महिमा जी !
हाँ ये भी कि वाक्य-गठन पर थोड़ी और मेहनत हो सकती थी !
परमआदरणीय योगराज सर .. आपका ह्रदय से धन्यवाद . सर क्या कहू आपने कह दिया आशीर्वाद मिल गया / सर शीर्षक कहानी के साथ न्याय इसलिय कर रहा है क्योंकि इसके न्यायधीश तो आप ही हैं :)
आदरणीया रेखा जी , आदरणीय नगाइच जी आप दोनों का ह्रदय से धन्यवाद /
कहानी अपने शीर्षक से पूर्ण न्याय कर रही है, कथ्य और शिल्प में थोड़ी और कसावट हो जाये तो बात ही बन जाये। मेरी बधाई स्वीकार करें महिमा जी।
Mahima ji ,bahut badhiya kahaani ,badhaai
Sunder lekhan, saralta, sarasta, sahajta aur dhaarapravaah... bahut hi rochak bana gaya kahani ko... bahut bahut badhayee Mahima Shree sahiba...
अजय जी , नमस्कार .. आपकी आभारी हूँ
आदरणीय योगी जी ..नमस्कार आपके विस्तृत अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ / उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद
वो कभी आसमान की और देखता तो कभी हाथ में पकडे उन ८० रुपयों को. और फिर सहसा ही उसके पाँव कलाली की दूकान की तरफ मुड पड़े. जहाँ उसको मिलेगी उसके हर दुःख की दवा. वहां बैठ कर वो सूखी मछली के साथ पिएगा देसी ठर्रा और वादा करेगा अपने आप से कि कल फिर काम पर जाना है, पैसे जमा करने है और घर वालों की हरेक इच्छा पूरी करनी है. खैर, अभी तो हफ्ते दो हफ्ते का काम बाकी है कुछ न कुछ तो कर ही लेगा वो.
ये उसकी मजबूरी है या उसका शौक ? मैं नहीं जानता लेकिन बार का खुद से किया वादा अगर टूटने लगता है तो अपना ही वजूद ख़त्म हो जाता है ! दूसरे से किया वादा टूटे तो दर्द होता है किन्तु खुद से किया हुआ वादा टूटता है तो बहुत कुछ ख़त्म सा हो जाता है ! बढ़िया कहानी , महिमा जी !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online