तू क्या-क्या ना सहती आई है l
कभी गंगा कहते हैं तुझको
कभी होती है देवी से उपमा
मन बिशाल ममता की मूरत
और सहनशक्ति में धरती माँ
रूप अनोखे हैं अनगिन तेरे
युग की गाथा में लक्ष्मी बाई है l
तू क्या-क्या ना सहती आई है l
तू ओस में डूबी कमल पंखुडी
रजनीगन्धा और हरसिंगार
सुरभित पुरवा के आँचल सी
घर में खिलती बन कर बहार
माटी सी घुल-घुल कर भी तू
ना कभी चैन से जीने पाई है l
तू क्या-क्या ना सहती आई है l
हर व्यथा को अंदर ही पीकर
घर-मधुबन को सींचे जाती
बाती सी बनकर जलती रहती
है धरती की ऊँची तुझसे छाती
पर पापी दुनिया की चालों में
कभी इज्ज़त भी तूने गंवाई है l
तू क्या-क्या ना सहती आई है l
-शन्नो अग्रवाल
Comment
ek stri ke sambandh main. vastvik chitran, badhai.
अरुण जी, राजेश कुमारी जी, संदीप जी एवं सोनम जी, आप सभी की सराहनीय अभिव्यक्ति से मन को अत्यंत खुशी मिली...रचना लिखना सफल हुआ. हार्दिक आभार व धन्यबाद.
अति सुन्दर रचना शन्नो जी " आँचल में है दूध और आँखों में पानी " की याद हो आई हार्दिक बधाइयाँ !
vaah shanno ji aurat ke kitni roop simat kar aa gaye aapki rachna me bahut sundar
रूप अनोखे हैं अनगिन तेरे
युग की गाथा में लक्ष्मी बाई है
आदरणीया शन्नो जी! सुन्दर कविता की प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें|
Good Morning mam
Very beautiful poem.
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