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माँ मुझे बचपन में मेरी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही रोटियां दिया करती थीं. इंटरवल में सारे बच्चे जल्दी जल्दी खाना ख़त्म करके खेलने चले जाते थे. और मै अपना खाना ख़त्म नहीं कर पता था. तो डब्बे में हमेशा ही कुछ न कुछ बच जाता था, और मुझे रोज़ डांट पड़ती थी. मेरी बहन भी घर आ के शिकायत करती थी कि उसे छोड़ के इंटरवल में मै खेलने भाग जाता हूँ.

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एक दिन मेरी बहन मेरे साथ स्कूल नहीं गई. मै ख़ुशी ख़ुशी घर आया और माँ को बताया की मैंने आज पूरा खाना खाया है. माँ को यकीन नहीं हुआ, उन्होंने डब्बा खोला और एकदम साफ़ सुथरा डब्बा देख के, मुझे दो झापड़ रसीद कर दिए.

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फिर माँ बोली की आज तुमने अपना पूरा खाना फेक दिया इसलिए मार पड़ी है. मुझे मालूम है की मै तुम्हे ज्यादा खाना देती हूँ और तुम छोड़ोगे ही. लेकिन अगर 4 रोटी में से 2 भी खा ली तो कुछ तो तुम्हारे पेट में जायेगा.

ये वो माँ का प्यार है, जिसे बचपन में समझ पाना हमारे वश की बात नहीं है.

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Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 29, 2012 at 11:59am

Shri Surendra ji, aapki baat sahi hai, hardik aabhar.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 28, 2012 at 4:44pm

प्रिय राकेश जी और झूठ पकड़ा गया न !  ..माँ आँखों में देख सब पढ़ लेती है माँ की ममता को याद कर आँखों में पानी भर जाता है ..सुन्दर लघु कथा -जय श्री राधे -भ्रमर ५ 

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 24, 2012 at 10:27pm

Aadarneey Arun Bhai ji saadar dhanyvaad.

Comment by Abhinav Arun on April 23, 2012 at 12:52pm

सच जिनके पास माँ है उनके पास स्वर्ग है हार्दिक बधाई इस लघुकथा पर आदरणीय श्री राकेश जी \\

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 22, 2012 at 7:50pm

हाँ भाई आशीष :)

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 22, 2012 at 7:49pm

श्रद्धेय सीमा जी, सादर नमस्कार, आपका द्रष्टान्त सुन के अच्छा लगा. जी मूल भावना संप्रेषित करने के लिए शिल्प का अपना स्थान है, सहमत हूँ. सादर धन्यवाद.

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 22, 2012 at 7:45pm

आदनीया वन्दना जी, सादर नमस्कार. जी आपकी बात से सहमत हूँ.

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 22, 2012 at 7:44pm

डाक्टर प्राची जी, सादर धन्यवाद. मै तो अभी भी माँ की भावनावो को नहीं समझ सकता किन्तु जो अवलोकन किया है और जो महसूस किया है बस उसे लिखा सकता हूँ.

Comment by आशीष यादव on April 22, 2012 at 10:41am
माँ
Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 21, 2012 at 4:13pm

आदरणीय सौरभ जी, सादर नमस्कार. अब गाँधी टोपी पहनी है, धीरे से बोलने के लिए नहीं :-)
ये बात मै मानता हूँ की गुरुजनों के धैर्य की थोड़ी परीक्षा हो गई है मेरे साथ, किन्तु यकीन जानिए जितना वक्त मिलता है उतने में पूरा प्रयास है.
आप सभी लोगो के आशीर्वाद से मै भी बहुत अभिभूत हूँ. धन्यवाद.

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