मजदूर दिवस को समर्पित
बड़ी देर से
इंतजार था कुत्ते को
रोटी के टुकड़े का
और जैसे ही
इंतजार समाप्त होने को आया
घट गई एक अनोखी घटना
मालिक के
रोटी फैंकते ही
एक कौआ
न जाने कहाँ से
उतरा जमीन पर
झट से रोटी को
दबाकर चोंच में
उड़ गया फुर्र से
कुत्ता बेतहाशा उसके पीछे दौड़ा
मगर उसकी दौड़-धूप भी
कोई रंग न लाई
हारकर
थककर
टूटकर
एक मजदूर की भाँति
विवश-सा होकर
वह बैठ गया
और उससे थोड़ी दूरी पर
वह कौआ
पेड़ की शाख पर
ऐसे ही बैठा था
जैसे बैठा हो मिल मालिक कोई .
दिलबाग विर्क
Comment
majboori ko sundar shabdon mein bayaan kiya hai .. badhai sweekaren virk sahab
वाह विर्क साहब बहुत सुंदर बिम्बित किया है
कविता खूब पसंद आई
बधाई
bhai dilbaag ji, saadar.
kitni mahatvpurna baat itni saadgi se kah di. badhai.
वह कौआ
पेड़ की शाख पर
ऐसे ही बैठा था
जैसे बैठा हो मिल मालिक कोई .
वाह वाह , विर्क जी, क्या कहने , इस कविता के माध्यम से आपने बहुत बड़ी बात कह दी है, रोटी किसी की किसी के पास है, बहुत बहुत बधाई आपको |
बहुत सुन्दर रूपक पेश किया आपने।
बेहतरीन रचना पर मेरी बधाई स्वीकार करें।
इशारों-इशारों में बहुत कुछ कहा है आपने, भाई दिलबाग़ जी.
बहुत बढ़िया कटाक्ष ..बहुत खूब
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