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ये साथ बिताए लम्हें, तुम्हे याद बहुत आयेंगे

ये साथ बिताए लम्हें, तुम्हे याद बहुत आयेंगे,
जब सोचोगे हो तन्हा तो तुमको तड़पायेंगे।।।।

वो फर्स्ट इयर (प्रथम वर्ष) की बातें,

जब खुद पर (खूब) इतराना
कुछ सर जी पूछ न बैठें, इन बातों से घबराना।
कुछ याद भी है छुप-छुप कर नीली-पीली को तकना,
वो इक दिन मेरी होगी, ऐसे खयाल भी रखना।
याद आयेगा उन दिनों का बस गप्पों मे कटना,
पर सेमेस्टर के टाईम, वो रात-रात भर जगना।

सब भूलेंगे लेकिन क्या, ये दिन भी भूल जायेंगे,
ये साथ बिताये लम्हें, तुम्हे याद बहुत आयेंगे।
जब सोचोगे हो तन्हा तो तुमको तड़पायेंगे।।।।।

टीचर की सीरियस बातों को भी मजाक मे लेना,
कगज के टुकड़ों पर लिख कुछ इसको-उसको देना।


आँखों मे इशारे कर के फिर हौले से मुस्काना,
मुँह से कुछ भी ना कहना, बस हाथों से बतलाना।
जब टीचर देखें मुड़ के, तो फिर सीरियस हो जाना,
जैसे सच में सीरियस थे, यूँ पन्नों मे खो जाना।

ये बातें कल ना होंगी, केसे जी बहलायेंगे,
ये साथ बिताए लम्हें, तुम्हे याद बहुत आयेंगे।
जब सोचोगे हो तन्हा तो तुमको तड़पायेंगे।।।।।

रीजल्ट देख के अपना, एकदम से ताव मे आना,
अब टॅाप करेंगे हम ही, इन यादों मे खो जाना।
बारह घण्टे पढ़ने का टाईम-टेबल भी बनाना,
पर शुरू करेंगे कल से, बस यही सोच सो जाना।

कल की आपा-धापी मे, फुर्सत के पल आयेंगे,
तब साथ बिताए लम्हें, तुम्हे याद बहुत आयेंगे।
जब सोचोगे हो तन्हा, तो तुमको तड़पायेंगे।।।।।

आशीष यादव २९-०४-२०१२

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Comment by आशीष यादव on May 3, 2012 at 7:04pm

आदरणीय श्री प्रदीप कुमार कुशवाहा जी, रचना पसन्द करने के लिये धन्यवाद

Comment by दुष्यंत सेवक on May 3, 2012 at 4:38pm

भाई आशीष यादव जी आपकी यह रचना मुझे ८ वर्ष पीछे अपने ग्रेजुएशन के अंतिम दिनों तक खींच ले गई...उस वय के मनोभावों को आपकी कविता में परिलक्षित होते देख कर अच्छा लगा..प्रतीत होता है चित्रों को देखकर की शायद कॉलेज छोड़े कुछ ही वक्त हुआ है.. बधाई हो इस भावाभिव्यक्ति पर.    

Comment by वीनस केसरी on May 2, 2012 at 11:38pm

कालेज छोडते समय सभी के मन ये यह भाव आता है
आपने इसे सुंदर कविता में पिरो दिया और मुझे अपने कालेज के दिन याद आ गए ..

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 2, 2012 at 1:04pm

aashish ji, saadar. hamen bhi vo din yaad aa gaye. badhai.

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