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बटेश्वरनाथ गाँव के सबसे बड़े आदमी हैं। भगवान का दिया हुआ सबकुछ है उनके पास। माता पिता अभी सलामत हैं। दो लड़के और एक लड़की भी है। बड़ा लड़का गटारीनाथ ८ साल का है। लड़की सुनयनी ६ साल की और सबसे छोटा लड़का मेहुल नाथ अभी ३ साल का है जिसे प्यार से सब मेल्हू कहते हैं।

 बटेश्वरनाथ के पिता कोई ३ साल पहले रिटायरमेन्ट लिये थे जब मेल्हू का जन्म हुआ था। रिटायरमेन्ट के समय खूब सारा पैसा भी मिला था। ये लोग खानदानी रईस भी थे। बटुकनाथ के पिता बहुत सारा पैसा छोड़ गये थे। इनके परिवार की खूबियाँ बहुत हैं। सबसे प्रेम मोहब्बत, गाँव वालों से मैत्री भाव, विनम्रता इत्यादि सभी गुण विद्यमान हैं।

आज बटेश्वरनाथ के अजीज मित्र झुण्डारीचन्द के बेटे का जन्मदिन है। बेटे के जन्मदिन की खुशी मे झुण्डारीचन्द ने बहुत शानदार दावत का प्रबन्ध किया है। सभी दोस्तों एवँ गाँव वालों को खाने पर बुलाया है। सबकुछ बहुत शानदार और सलीके से चल रहा है। थोड़ी देर बाद सब लोग खाकर चले जाते हैं। बस बटेश्वरनाथ और कुछ अन्य मित्र बचते हैं। फिर इनके खाने का इन्तज़ाम होता है। सभी मित्रगण खाने बैठते हैं। झुण्डारीचन्द का छोटा भाई खाना परोस रहा है।

पत्तलों मे तरह तरह के पकवान। भरपेट खाया आदमी भी देखे तो एकबार खाने बैठ जाय। सभी दोस्तों के आगे गिलास मे व्हिस्की भी है और दो पैग का दौर चल चुका है। बटेश्वरनाथ मद्यपान नही करते हैं लेकिन आज कुछ और होने वाला है।

हेङ्गुरदास एक और व्हिस्की गिलास मे डालते हुए बटेश्वरनाथ की तरफ बढ़ाते हैं। बटेश्वर जी बड़े विनम्रता से मना करते हैं परन्तु सभी दोस्तों के कहने पर एक पैग को तैयार हो जाते हैं। हेंगुरदास मझे हुए मद्य परोसक हैं। वो बटेश्वरनाथ का पैग थोड़ा कड़ा बनाते हैं। कुछ देर मे भोजन करते हुए और थोड़ा थोड़ा मुहँ बनाते हुए बटेश्वरनाथ पुरा गिलास गटक जाते हैं।

पार्टी खत्म हो चुकी है। सप्तर्षि भी ऊपर उठ आये हैं। कोई ११ बजे का वक्त है। सभी दोस्त विदा लेते हैं। बटेश्वरनात घर आते हैं और बारामदे मे रखे बसहटे पर सो जाते हैं। गजब की सुहावनी रात। आज तक कभी ऐसी नींद नही आयी थी। आराम आराम और बस आराम। नींद भी ऐसी जैसे लखिया सेज पर सोये हों।

रात बीत गयी है। सभी तारे प्रतापी सूरज के प्रभाव से तेजहीन एवँ अदृश्य हो गये हैं, केवल शुक्र अपनी महिमा बचाने की जद्द्जहद मे है। गाँव के सभी लोग जग गये हैं और पशुओं को नाद पर लगाकर चारापानी डाल रहे हैं। सुनयनी पापा कहते आती है और बटेश्वर का हाथ पकड़कड़ हिलाती है। बटेश्वर ऊँघते हुए उठते हैं। देखते हैं सुबह हो गयी है। उनके पशू (पशु का बहुवचन) अभी नाद पर नही लगे हैं। यह पहली बार हो रहा है जब बटेश्वरनाथ सभी तारों के बाद जगे हों। वो जल्दी से पशुओं को चारापानी कर के खेत की तरफ चल देते हैं। जल्दी से नित्य काम निपटाते हें।

खेत मे गेहूँ की फसल पक गयी है। कटिया का समहुत (श्रीगणेश) भी नही हुआ है। बटेश्वरनाथ कटिया-दवँरी (कटाई-मड़ाई) का कुछ काम बनिहारों से करवाते हैं और कुछ हार्वेस्टर से। कल सोमवार है, दिन शुभ है। अतः वो आज बनिहारों को कहने निकल जाते है।

पुरे दिन आज वो बनिहारों के साथ रहे। सब कुछ देखना भी तो पड़ता है कि सब कर्पा सही से धर रहे हैं कि नही, छींट तो नही रहे हैं, ज्यादा बाल तो नही टूट रही है। शाम तक बनिहारों के साथ थक जाते हैं। घर जाते समय मुलाकात झुण्डारीचन्द से होती है, फिर बातें शुरू। बटेश्वरनाथ रात कि निंद का जिक्र करते हैं। झुण्डारीचन्द सब राज खोल देते हैं कि व्हिस्की का एक पैग सारी थकान मिटा देता है। फिर अच्छी नींद आती है। सुबह फिर से वही तरोताजगी रहती है।

बटेश्वरनाथ कटिया-दँवरी से निकल चुके हैं लेकिन शाम को व्हिस्की का एक पैग आदत हो चुकी है।

धान रोपाई का आज समहुत था। बटेश्वरनाथ कुछ ज्यादा थक गये थे। एक पैग पीने बैठे तो कुछ ज्यादा ही पी लिए, चढ़ गई। सुकपोला भोजन को कहने लगी तो बटेश्वरनाथ की आवाज लटपटा रही थी। पीने के सन्दर्भ मे कहने लगी, "काहे एतना पीते हैं?" इतना सुनते ही बटेश्वरनाथ का गुस्सा फूट जाता है," इ हमरी मेहर होके हमको सिखायेगी, दिन भर खेत मे हम मरते हैं।" और भी बहुत कुछ कहने लगते हैं। सुनयना और मेल्हू तो अभी सो गये हैं लेकिन गटारी अभी जाग रहा था और बाबा से कहानी सुन रहा था। जब बटुकनाथ सुनते हैं तो उठकर आते हैं। उनके पूरे जीवन मे यह पहली बार है जब इस तरह की कोई घटना उनके घर घटी हो। बटुकनाथ पहले से ही जानते थे कि बटेश्वरनाथ पीने लगा है लेकिन एक तो इकलौता दुलारा था दुसरे पूरे घर को सम्हालता था। खेतों का काम करता और करवाता था। अतः सोचते थोड़ा सा पीकर इसे आराम हो जाता है तो कोई बात नही। लेकिन आज तो हद हो गई। एक महाभारत के बाद वो रात शान्त हुई। फिर सुबह, नई सुबह। सब कुछ फिर से ठीक ढ़ंग से, लेकिन बटेश्वरनाथ को रात की बात बिल्कुल याद नही थी।

बटेश्वरनाथ थोड़ा देर से जगते हैं लेकिन खेत पर चले जाते हैं। लेव लगवाकर घर आते हैं और नाश्ता करते हैं। बनिहार आकर बियड़ा से धान लगाने के लिये उखाड़ रहे हैं। कुछ देर बाद बटेश्वरनाथ खेत की ओर चल देते हैं। फिर वही मेहनत, थकान फिर रात मे पैग। आज बटेश्वरनाथ होश मे रहते हैं फिर भी पिता बटुकनाथ को पीने की बात अखरती है कि क्यों नही वो मना कर पाते हैं।

कुछ समय बीतता है। फिर चेखुर के जन्मदिन की पार्टी होती है। अबकी पैग का आग्रह नही करना पड़ता है सबको। इस बार भी हेंगुरदास ही पैग बनाते हैं। बटेश्वरनाथ खुशी-खशी सबसे अधिक पीते हैं। और पार्टी के अन्तिम दौर मे नाचने लगते हैं। गमछा को सिर पर ओढ़कर उसका घूँघट बनाते हुए कभी लाचारी तो कभी फगुआ शुरू करते हैं, और बड़ी अदा से कमर लचकाते हुए एक पैर के सहारे नृत्य शुरू करते हैं। तकरीबन साढ़े बारह बजे विदाई होती है। विदाई के समय बटेश्वरनाथ सभी दोस्तों मे अपने सबसे छोटे पुत्र मेहुल का जन्मदिन मनाने की घोषणा करते हुए१७ अप्रैल को सबको निमन्त्रित कर देते हैं।

कटियाँ दँवरी का काम खचाखच लगा है किन्तु बटेश्वरनाथ अपने वादे को याद रखे हैं। समाज मे परिवार की ऊँची नाक है, उसे और ऊँचा बनाने के लिये बटेश्वरनाथ बहुत ही अच्छी दावत का इन्तजाम करते हैं। पूरा गाँव निमन्त्रित है। हर चीज का प्रबन्ध है। कहीं से कोई कमी नही है। झुण्डारीचन्द की हर व्यवस्था से ऊँची व्यवस्था है।

लोग पाँतों मे बैठ के खा रहे हैं। हर तरह का पकवान सभी लोगों तक पहुँच रहा है। जिसका जो मन करे, जितना मन करे, हींक भर खाए। कोई मनाही नही। अब गाँव वालों के खाने का दौर खत्म हो गया है। केवल मित्रगण बाकी हैं। वो लोग भी खाने बौठते हैं। फिर वही सब शुरू। भोजन शुरू होने से पहले ही दो पैग चल चुका है। गुनगुने नशे मे भोजन शुरू होता है। बातचीत मे बड़ाई इतनी होती है कि बटेश्वरनाथ फूले नही समाते। अचानक एक मित्र उस पार्टी की तुलना झुण्डारीचन्द की पार्टी से करते हुए श्रेष्ठ बताते हैं। इधर कुछ नशे की हालत और कुछ मजाक मे बटेश्वरनाथ भी झुण्डारीचन्द की हिनाई कर देते हैं। फिर क्या। देखते देखते मित्रगण दो खेमो मे बट जाते हैं। नशा अपना रंग दिखाता है और बात तू तू- मै मै तक आ जाती है। भारी हंगामा मचता है। बिचारे बटुकनाथ किसी तरह शान्त कराने की कोशिश करते हैं, लेकिन सारे प्रयास विफल प्रतीत होते हैं। झुण्डारीचन्द बटुकनाथ के पैर तो पकड़ते हैं लेकिन बटेश्वरनाथ को गाली भी देते हैं। साफ प्रतीत होता है कि नशा हावी है। अन्त मे झुण्डारीचन्द का खेमा पार्टी का बहिष्कार करता है और भविष्य मे बटेश्वरनाथ के खेमे से किसी भी तरह का सम्बन्ध न रखने की कसम खाता है।

छः साल बीत गये हैं। बटुकनाथ को मरे ढ़ाई साल हो गये। पिता जी की पेन्शन खत्म है। बटेश्वरनाथ को केवल कृषि का ही आसरा है किन्तु बटेश्वरनाथ मे पहले से ज्यादा कुछ रईसी आ गयी है। अब हर शाम को कुछ पीने वाले उनके दरवाजे पर बैठते हैं। फिर बटेश्वरनाथ की तारीफ तो कभी उनके बच्चों की तारीफ। बटेश्वरनाथ प्रसन्न होते हैं। फिर पैगों का दौर शुरू होता है। फिर रात। सुबह, दोपहर फिर शाम को शुरू। रईसी बरकरार रखने हेतु धीरे-धीरे सभी मवेशी बिक चुके हैं। बस एक भैस है जो एक टाईम एक डेढ़ किलो दूध देती है। वो भी खटारा हो चुकी है।

समय बीतता है। पीने पिलाने व रईसी बरकरार रखने के चक्कर मे बटेश्वरनाथ की चल सम्पत्ति  चली गई है, लेकिन अचल सम्पत्ति बहुत है। एक दिन शाम को बोतल खत्म होने के बाद कोई पियक्कड़ मित्र बैंक से लोन लेने की बात करता है। फिर क्या। जमीन को दिखाकर बटेश्वरनाथ लोन लेते हैं। फिर वही पीना-पिलाना।

अब तो सुकपोला से झगड़े भी दिनचर्या के अंग बन चुके हैं। पीने के बाद पूरे गाँव कि माँ-बहन एक करना भी शुरू कर दिया बटेश्वरनाथ। धीरे-धीरे लोगों का ुनके दरवाजे आना बन्द हो गया। लोन की कोई भी किश्त समय पर न दे पाने की वजह से बैंक ने उनकी सम्पति ले ली थी। अब बटेश्वरनाथ को किसी चीज की सुधि न रहती। झूठ बोलकर शाम के पैग का किसी तरह जुगाड़ करना। बात व्हिस्की से देशी नूरी (देशी शराब) पर आ गयी थी। वो भी समय पर न मिलती, बटेश्वर पागल हो उठता।

आज होली है। बटेश्वर को कई दिन से दारू सूँघने को भी नही मिली है। प्रधान जी के घर से शुरुआत होती है। बटेश्वर को लगता है जैसे बरसों की प्यास बुझ रही है। जम के पीता है। कहीं व्हिस्की, कहीं भाँग, कहीं रम तो कहीं ठर्रा, जो भी मिला बस पीते गया।

दो- ढाई का वक्त है। होली-फगुआ गाने वालों की टोली सबके दरवाजे गा रही है। लोग झूम के गा रहे हैं। नाच रहे हैं। अचानक गाँव का एक लड़का ढिभर एक आदमी के सनहना मे गिरे होने की खबर देता है। लोग भागे-भागे उधर जाते हैं। पूरा शरीर बास मार रहा है। कुछ शराब की दुर्गन्ध तो कुछ नाले की। दो लड़के खींचकर बाहर लाते हैं। गटारी अपने बाप की यह स्थिति देखकर दूसरी ओर चला जाता है। लोग अब भी वहाँ जुटे हैं। मक्खियाँ घेर रखीं हैं बटेश्वर को। सुकपोला खूब रो रही है और बटेश्वर को भगवान से उठा लेने की दुहाई दे रही है। एक लड़का दूर से ही बाल्टी का पानी बटेश्वर के शरीर पर फेंक रहा……………………………..

आशीष यादव

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Comment by आशीष यादव on April 10, 2012 at 1:54pm

आदरणीय श्री Arun Kumar Pandey 'Abhinav' जी, आदरणीय श्री ganesh lohani जी एवँ आदरणीया Seema agrawal जी, आप लोगों को ये कहानी पसन्द आयी मै इसे ही अपनी सफलता मानता हूँ।
आप लोगों का प्यार ऐसे ही मिलता रहेगा मुझे पूरा विश्वास है।

thanks to all of you

Comment by ganesh lohani on April 5, 2012 at 1:49pm

बड़ी मार्मिक हिर्दयस्पर्शी कहानी की रचना |आज  न बटेश्वर रहा न ही उसके बाब  दादा का खेत खलिहान सब कुछ उजाड़ दिया.सब कुछ लुटा दिया  हेङ्गुरदास के एक पेग ने . हमेसा हमेसा के लिए सुला दिया और पीछे छोड़ गया रोते हुए परिवार को. इस कहानी का हर किरदार हमें कहीं न कहीं किसी गली कुचे मेंव गाँव में  मिल ही जाते हैं |"शुभकामनाएँ"

गणेश लोहनी 
Comment by Abhinav Arun on April 5, 2012 at 10:48am

आशीष जी आपमें एक सफल किस्सागो के सभी गुण हैं यह कहानी साबित करती है | नशा और उसके दुष्परिणाम को बखूबी चित्रित किया है आपने | यह बिलकुल अपने गाँव की कथा लगती है हर पाठक को यही इसकी सफलता है | हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आपको !!

Comment by आशीष यादव on April 3, 2012 at 10:38am

आदरणीय श्री  Laxman Prasad लादिवाला एवं आदरणीया श्रीमती  rajesh कुमारी आप लोगो की हौसला आफजाई का मै तह-ए-दिल से शुक्र गुजार हूँ| 

आप लोगों को कोटिशः नमन 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 22, 2012 at 10:41am

achchi lagi kahani pravaah bhi hai gaon ki paripati ko chitrit karne me saamarthay hai sabse khasbat samayik hai aaj kal to ghar ghar me yahi ho raha hai.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 22, 2012 at 10:33am

bahut acchi kahani hai aise adarsh kahaniyo ki jaroorat hai sharab aam admi ki dushman hai aise me bhagwan se 

uthalene ki duhaiu dene ke alawa kya kiya ja sakta hai 

Comment by आशीष यादव on March 21, 2012 at 9:06pm

aadarniya shri Saurabh Pandey sir ji, aapne kahaani padhi aur jo pratikriya di mujhe bahut pasand aayi. aap ke dwarta diya gya sujhaw bhi bahut achchha lga.

bahut bahut dhanywaad.

Comment by आशीष यादव on March 21, 2012 at 9:04pm

aadarniya shri bagi ji, pranaam.

aap ki tippani mujhe bahut pasand aayi. aap ne meri kamiyon se awgt kraya bahut achchha lga. 

charitro ke naam ko lekar aapne jo kaha uske baare me mai bhi soch rha tha lekin socha ki aise naam rakhu jo shayad kabhi prog me n aaye ho. so amine aisa kiya.

कुछ समय बीतता है। फिर चेखुर के जन्मदिन की पार्टी होती है।//

ji aapne durust farmaaya. maine typing ke waqt yah galti kar di thi. mujhe pahgle hi btana tha ki chekhur jhundarichand ka beta hai. iske liye mujhe bhi khed hai.

aap ki pratikriya mujhe bahut achchi lagi.

bahut bahut dhanywaad.

Comment by आशीष यादव on March 21, 2012 at 8:58pm

aadarniy shri PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA ji, shri Ganesh Jee "Bagi" ji, shri Saurabh Pandey ji ewam shri Dr. Shashibhushan ji. aap logo ko sadar dhanywaad. aap logo ne meri khaani padhi ewam apni mulywaan tippaniyaan rakhi.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2012 at 10:20pm

आंचलिक कथाओं की श्रेणी में शुमार इस कहानी का कथ्य पक्ष शानदार है. जिस तरह से देसज शब्दों का और देसी संज्ञाओं का मुखर प्रयोग हुआ है वह रोमांचित करता है. कहन को थोड़ी और कसावट दी जा सकती थी. प्रारम्भिक कहानियों में से भाई आशीष जी की यह कहानी सबसे जान्दार है.

शुभेच्छाएँ और शुभकामनाएँ

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