क्यों आज तुम्हे अब चैन नहीं है महलों में?,
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आदरणीय DEEPAK SHARMA KULUVI सर एवँ Bishwajit yadav भाई, रचना पसन्द करने के लिये धन्यवाद
behatrin racna
आदरणीय श्री LOON KARAN CHHAJER एवँ आदरणीया mohinichordia जी, आप लोगो ने कविता को सराहा। बहुत-बहुत धन्यवाद।
आशीष जी
भुत ही अच्चा व्यंग किया है आपने. वार्तमान स्थिति का खाका खिंच दिया है. बधाई.
लूण करण छाजेड
बहुत - बहुत बधाई आशीष यादव जी
आज की सामाजिक ,राजनेतिक स्थितियों के परिपेक्ष्य में लिखी सशक्त सम सामयिक रचना | जो रात -दिन मेहनत कर ....जिस रोज पार करते हो हद एय्याशी की ... दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ | आपने रचना पढने को कहा ,धन्यवाद |लिखते रहिये |शब्दों की शुद्धता पर ध्यान दीजियेगा |
मै आप सभी लोगो को हृदय से धन्यवाद देता हूँ कि आप लोगों ने मेरी कविता कि इतनी सराहना की| आप लोग यूँ ही अपना नेह छोह बनाएं रखेंगे तो मै और कुछ नया सीख सकूँगा और लिख सकूँगा| एक बार फिर से बहुत बहुत धन्यवाद|
आशीष जी, यह कविता बेहद सामायिक और सटीक व्यंग है जो कहीं ह्रदय को छूती है.....सुन्दर बहुत बहुत बधाई
बहुत प्रभाव शाली कटाक्ष आशीष जी ! कमाल की ओजपूर्ण रचना ! बधाई स्वीकारें !
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