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ज़िंदगी कर दी सनम तेरे हवाले अब तो

ज़िंदगी कर दी सनम तेरे हवाले अब तो।
तू भी बढ़के मुझे सीने से लगा ले अब तो॥

दूर रहता हूँ तो आँखों में नमी रहती है,
मैं भी हँस लूँ तू ज़रा पास बुला ले अब तो॥

हर जगह तू ही तू अब मुझको नज़र आता है,
रास आते नहीं मस्जिद ये शिवाले अब तो॥

ज़िंदगी इस तरह मत बाँट मुझे टुकड़ों में,
रोज़ घुट घुट के ये मरने से बचा ले अब तो॥

दाम बढ़ने को है बाज़ार में अब मेरा भी,
जौहरी तू मुझे मिट्टी से उठा ले अब तो॥

ज़िंदगी को किया लाचार है मंहगाई ने,
छीनने है लगी मुफ़लिस के निवाले अब तो॥

और कुछ दूर ही मंज़िल है न घबरा “सूरज”,
हँस के कहते हैं मेरे पावों के छाले अब तो॥

  • डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

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Comment by Saurabh Pandey on May 8, 2012 at 9:26pm

वज़्न के साथ आपने ग़ज़ल कही और हम बस मुग्ध हो गये.

इस शेर पर विशेष बधाई स्वीकार करें -

हर जगह तू ही तू अब मुझको नज़र आता है,
रास आते नहीं मस्जिद ये शिवाले अब तो॥

और मक्ते में तो गिरते हुए हौसले को ज़ोर देने की कुव्वत है.

आपकी किसी पहली ग़ज़ल से मेरा तार्रुख हो रहा है.  बहुत ही उम्दा.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on May 8, 2012 at 6:41pm

हार्दिक अभिनंदन डॉ. साहब! अब आपकी ग़ज़ल के गुलदस्ते यहाँ भी महकेंगे! शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई!

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on May 8, 2012 at 5:58pm

Doctor Sahab, Apkaa manch par swagat hai, ekdam umda gazal. badhai sweekar karen. 

Comment by Sarita Sinha on May 8, 2012 at 5:10pm

डॉ.सूर्य जी, नमस्कार,

बहुत उम्दा ग़ज़ल...क्या बात होती है कि हमेशा गज़ल का आखिरी शेर ही सब से ज़बरदस्त होता है..
और कुछ दूर ही मंज़िल है न घबरा “सूरज”,
हँस के कहते हैं मेरे पावों के छाले अब तो॥
बहुत खूब..........
Comment by वीनस केसरी on May 8, 2012 at 2:27pm

डॉ. सूर्या बाली “सूरज” जी ओ बी ओ मंच पर आपकी पहली ग़ज़ल पढ़ी और अशआर ने आपका परिचय स्वयं प्रस्तुत कर दिया

हार्दिक स्वागत व बधाई

Comment by Roshni Dhir on May 8, 2012 at 1:25pm

बहुत खूब गज़ल सूर्या जी , 

एक शेर मेरी और से ..

तेरे लिए बना लिया है दुश्मन सरे ज़माने को,  

तू अपने दिल के किसी कोने मे छुपा ले अब तो ....

ज़िंदगी कर दी सनम तेरे हवाले अब तो।
तू भी बढ़के मुझे सीने से लगा ले अब तो

आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 8, 2012 at 12:21pm

और कुछ दूर ही मंज़िल है न घबरा “सूरज”,
हँस के कहते हैं मेरे पावों के छाले अब तो॥ sir ji kitni sarlta se ,vah, badhai

Comment by Abhinav Arun on May 8, 2012 at 11:24am

ज़िंदगी इस तरह मत बाँट मुझे टुकड़ों में,
रोज़ घुट घुट के ये मरने से बचा ले अब तो॥

 वाह वाह बहुत सुन्दर कलाम डॉ सूर्या साहब !! इस अंदाज़े बयान को सलाम है हार्दिक बधाई !!

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