For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल मेरा फिर से सितमगर तलाश करता है।

दिल मेरा फिर से सितमगर तलाश करता है।

आईना जैसे के पत्थर तलाश करता है॥

एक दो क़तरे से ये प्यास बुझ नहीं सकती,

दिल मेरा अब तो समंदर तलाश करता है॥

तेरी धड़कन तेरी हर सांस में छुपा है वो,

आजकल जिसको तू बाहर तलाश करता है॥

जाने किस बात से नाराज़ है मेरा दिलबर,

लेके पत्थर जो मेरा सर तलाश करता है॥

छोडकर मुझको तड़पता हुआ अकेले में,

वो किसी और का बिस्तर तलाश करता है॥

चैन जो दिन का चुराता है नींद रातों की,

दिल उसे ख़्वाबों में अक्सर तलाश करता है॥

अपने हाथों की लकीरों को देखकर मुफ़लिस,

रात दिन अपना मुकद्दर तलाश करता है॥

हरसू मिलती है बहुत भूक बेबसी तंगी,

जब ग़रीबों का कोई घर तलाश करता है॥

खिड़कियाँ खोल के बाहर नहीं देखा “सूरज”

धूप को कमरे के अंदर तलाश करता है॥

                        डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

Views: 576

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 23, 2012 at 7:30pm

जाने किस बात से नाराज़ है मेरा दिलबर,
लेके पत्थर जो मेरा सर तलाश करता है॥

वाह बाली साहिब वाह, बहुत ही दिलकश ग़ज़ल कही है , दाद कुबूल करें श्रीमान |

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 20, 2012 at 8:11am

आदरणीय बाली जी
               नमस्कार,
                           अपने हाथों की लकीरों को देखकर मुफ़लिस,
                           रात दिन अपना मुकद्दर तलाश करता है॥
बहुत सुन्दर शायरी. कुछ शेर तो दिल को छू लेते हैं. हार्दिक बधाई.

Comment by AjAy Kumar Bohat on May 17, 2012 at 9:17pm
ek behad khubsurat gazal...
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 17, 2012 at 6:37pm

खिड़कियाँ खोल के बाहर नहीं देखा “सूरज”

धूप को कमरे के अंदर तलाश करता है॥

saare ke saare sher gajab

badhai. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 17, 2012 at 5:54pm

क्या कहा है आपने डा. सूर्या बाली जी !  मतले से मक्ते तक अपने जो ऊँचाई बनाये रखी है, कि दिल खुल कर वाह-वाह करता जा रह है. किस एक शे’र की बात करूँ ?

फिरभी, कुछ शेर को बिना दुहराये नहीं रह पा रहा हूँ. निम्नलिखित शेर भावविभोर कर गये.

एक दो क़तरे से ये प्यास बुझ नहीं सकती,
दिल मेरा अब तो समंदर तलाश करता है॥

तेरी धड़कन तेरी हर सांस में छुपा है वो,
आजकल जिसको तू बाहर तलाश करता है॥

जाने किस बात से नाराज़ है मेरा दिलबर,
लेके पत्थर जो मेरा सर तलाश करता है॥

अपने हाथों की लकीरों को देखकर मुफ़लिस,
रात दिन अपना मुकद्दर तलाश करता है॥

खिड़कियाँ खोल के बाहर नहीं देखा “सूरज”
धूप को कमरे के अंदर तलाश करता है॥

इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिये हृदय से बधाइयाँ स्वीकारें, साहब !

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on May 17, 2012 at 11:55am

kya hahun sooraj bhai tareef ke liye alfaz nahin mil rahe hain ek ek sher me waaqai me apne shayri ki hai wah...................................wah dad kubool karein 

Comment by Bhawesh Rajpal on May 17, 2012 at 9:56am

 

बेहद खुबसूरत  !  वाह-वाह ! बहुत - बहुत  बधाई ! 
Comment by Yogi Saraswat on May 17, 2012 at 9:56am

अपने हाथों की लकीरों को देखकर मुफ़लिस,

रात दिन अपना मुकद्दर तलाश करता है॥

हरसू मिलती है बहुत भूक बेबसी तंगी,

जब ग़रीबों का कोई घर तलाश करता है॥

क्या बात है आदरणीय श्री डॉ. बाली जी ! एक एक अल्फाज़ , एक एक अश'आर खूब सूरत !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 16, 2012 at 9:36pm

अपने हाथों की लकीरों को देखकर मुफ़लिस,

रात दिन अपना मुकद्दर तलाश करता है॥

खिड़कियाँ खोल के बाहर नहीं देखा “सूरज”

धूप को कमरे के अंदर तलाश करता है॥    
डा . सूर्या बाली जी बहुत उम्दा ग़ज़ल लिखी है आपने सभी शेर खूबसूरत हैं पर इनदोनो के लिए विशेष दाद कबूल करें 

          

Comment by Nilansh on May 16, 2012 at 8:57pm

खिड़कियाँ खोल के बाहर नहीं देखा “सूरज”

धूप को कमरे के अंदर तलाश करता है॥

bahut sunder ghazal suraj ji

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service