ज़िंदगी कर दी सनम तेरे हवाले अब तो।
तू भी बढ़के मुझे सीने से लगा ले अब तो॥
दूर रहता हूँ तो आँखों में नमी रहती है,
मैं भी हँस लूँ तू ज़रा पास बुला ले अब तो॥
हर जगह तू ही तू अब मुझको नज़र आता है,
रास आते नहीं मस्जिद ये शिवाले अब तो॥
ज़िंदगी इस तरह मत बाँट मुझे टुकड़ों में,
रोज़ घुट घुट के ये मरने से बचा ले अब तो॥
दाम बढ़ने को है बाज़ार में अब मेरा भी,
जौहरी तू मुझे मिट्टी से उठा ले अब तो॥
ज़िंदगी को किया लाचार है मंहगाई ने,
छीनने है लगी मुफ़लिस के निवाले अब तो॥
और कुछ दूर ही मंज़िल है न घबरा “सूरज”,
हँस के कहते हैं मेरे पावों के छाले अब तो॥
Comment
बेहेतरीन गजल
हर जगह तू ही तू अब मुझको नज़र आता है,
रास आते नहीं मस्जिद ये शिवाले अब तो॥ डॉ.सूर्या बाली जी हार्दिक बधाई
आदरणीय बाली जी
नमस्कार,
दाम बढ़ने को है बाज़ार में अब मेरा भी,
जौहरी तू मुझे मिट्टी से उठा ले अब तो॥
बहुत सुन्दर गजल . बधाई.
ज़िंदगी इस तरह मत बाँट मुझे टुकड़ों में,
रोज़ घुट घुट के ये मरने से बचा ले अब तो॥
और कुछ दूर ही मंज़िल है न घबरा “सूरज”,
हँस के कहते हैं मेरे पावों के छाले अब तो॥
बहुत सुन्दर ..हाँ अब सूरज निकलने ही वाला है ...छाले और पेशानी पर पड़े बल अब रंग तो लायेंगे ही ...डॉ सूरज जी ...बधाई ..भ्रमर ५
ज़िंदगी इस तरह मत बाँट मुझे टुकड़ों में,
रोज़ घुट घुट के ये मरने से बचा ले अब तो॥
दाम बढ़ने को है बाज़ार में अब मेरा भी,
जौहरी तू मुझे मिट्टी से उठा ले अब तो॥
बहुत खूब , आदरणीय डॉ. बाली ! आज मैं भी इस मंच पर आ गया हूँ !
बहुत सुन्दर गज़ल डा. साहब.
बधाई
दाम बढ़ने को है बाज़ार में अब मेरा भी,
जौहरी तू मुझे मिट्टी से उठा ले अब तो
बहुत खूब डॉ साहब, जिस प्रकार काफिया और रदीफ़ का निर्वहन आपके द्वारा किया गया है वो काबिले गौर है, सभी शेर बढ़िया कहे है , कुल मिलकर एक अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति | दाद कुबूल करें श्रीमान |
वाह बहुत उम्दा ग़ज़ल लिखी है डा सूर्या बाली जी
bahut sundar. :)
दूर रहता हूँ तो आँखों में नमी रहती है,
मैं भी हँस लूँ तू ज़रा पास बुला ले अब तो॥
हर जगह तू ही तू अब मुझको नज़र आता है,
रास आते नहीं मस्जिद ये शिवाले अब तो॥...
आदरणीय डॉक्टर सूरज जी, नमस्कार .बहुत ही खुबसूरत गज़ल ..बधाई स्वीकार करें
bahut sundar ghazal kahi aapne dr. sahab ...............waah kya baat hai .....laajwaab
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