छहः साल का नन्हा सा बच्चा था रोहन, लेकिन बड़ा होशियार.मम्मी पापा सब की आँखों का तारा . पढने में जितना होशियार उतना ही बड़ा खिलाडी.हमेशा कोई न कोई नयी हरकत कर के माँ को चौंका देता था. एक दिन शाम को काफी अँधेरा हो चला लेकिन रोहन खेल कर घर नहीं लौटा. माँ की डर के मारे हालत ख़राब होने लगी. उलटे सीधे विचार मन में आने लगे..बेहाल हो कर ढूंढने निकली तो देखा की जनाब शर्ट को पेट पर आधा मोड़े हुए उस में कोई चीज़ बटोरे लिए चले आ रहे हैं. ख़ुशी से चेहरा लाल हुआ है. मुस्कान है कि रोके नहीं रुक रही..माँ डांटना वाटना भूल कर आश्चर्य में पड़ गयी कि आखिर कौन सा खज़ाना मिल गया ..रोहन ने पास आ कर माँ को खुशी ख़ुशी बताया कि आज उन्हों ने एक गिलहरी के नन्हे से बच्चे को कैसे पकड़ा और कैसे गोद में उठा कर ले आये हैं , अब इसे पालतू बनाएंगे और अपने रूम में रखेंगे.......
Comment
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, संदेशयुक्त कहानी लिखने की
एक कोशिश की थी....आप को ठीक लगी इस केलिए धन्यवाद..
बाल-मनोविज्ञान को रेखांकित करती इस कहानी का सकारात्मक पहलू यह है कि यह उस मोड़ से एकदम से मुड़ जाती है जहाँ से ’रक्षा में हत्या’ दीखती हुई नहीं मुड़ पायी थी. कथाकार की किस्सागोई प्रवाहमय है जो अपने बहाव में पाठक को बहाये जाता है. कथानक का कसाव भी देखते बनता है. संवाद के क्रम में सटीक वाक्य सामने आते हैं.
इस कथा के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद, सरिताजी.
haa sarita di us kahani ka naam giluu tha mujhe baad men yaad aagaya tha .... par aapki kahani har mayne men uchh koti ki lagi bahut hi acchi
सिंह साहब नमस्कार,
भावेश जी नमस्कार,
प्रिय महिमा जी, नमस्कार,
आदरणीय कुशवाहा जी,सादर प्रणाम,
प्रिय सोनम जी , स्नेह,
प्राची जी, नमस्कार,
माँ के दूर होने का दर्द केवल वही जान सकता है , जो माँ से बिछड़ गया हो , माँ भगवान का रूप होती है , माँ की सेवा किसी भी तीर्थ , किसी भी पूजा से महान होती है ,
माँ के महत्त्व को दर्शाती हुई भावनात्मक कहानी ! हार्दिक बधाई ! - भवेश राजपाल !
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