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कितना कठिन हो जाता है
लिखना
कई बार
'फैशन' के अनुरूप
कैसे साध रखा है हमने
अपने मन को
की वह सोचता है
बिलकुल किसी कंप्यूटर प्रोग्राम की तरह
किस तरह रख पाते हैं हम
अपने मन के भावों को
अनुशासन में
और
वे प्रकट होते हैं
केवल
एक दिवस-विशेष पर...
एक विशेष दिन ही जागता है जज़्बा देश-प्रेम का
या
मातृ-पितृ भक्ति का..
किसी एक दिन ही
आती है
भूली-बिसरी
बहन की याद..
ऐसे ही कई लोग हैं
जिनका ऋणी है
यह तुच्छ सा जीवन
लेकिन विडम्बना है
अभी याद भी नहीं आ पा रहे हैं
वे तमाम लोग
किन्तु
एक दिवस-विशेष पर
बज उठेगा
मन-मस्तिष्क में अलार्म
तब लिखूंगा शायद
उनके बारे में भी
जब देगा अनुमति
मेरा अनुशाषित मन
और पूरे वर्ष
जिसको याद नहीं कर पता हूँ
वह
मैं स्वयं हूँ
क्यूंकि
मेरा तो कोई " डे " नहीं है...

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Comment

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Comment by AjAy Kumar Bohat on May 14, 2012 at 10:43am

Bhramar ji dhanyavad, mera bhi maan na hai ki kuch to jagrirti ho... :)


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Comment by rajesh kumari on May 13, 2012 at 11:17pm

har cheej tukdon me bant gai din bhi rishte bhi ......aapki rachna me ati sundar sandesh aur bhaav chhupe hain.badhaai

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 13, 2012 at 10:33pm

हां अजय जी कुछ ऐसा ही है लेकिन ठीक ही है किसी तरह कुछ जागृति तो हो ...स्व को लोग संभल लें तो फिर तो बात ही बन जाए  ...भ्रमर५ 

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