आत्मावलोकन के क्षणों में
मन मेरे
जब तू जूझता
डूबता , उतराता
फिर थक के बैठ
किनारे सुस्ताता है
औ तब ये सब
देख रही होती हैं
मेरी आँखे
सबसे परे
उन सारे पलों को
तुझे जीते हुए
औ तभी
विहँस पड़ती हैं
उसी क्षण
जब उनमें से
चुन लेता है तू
एक मोती
18th May2012
Comment
अरुण जी .. कविता आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ .. आपका हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय बागी जी .. कविता आपको अच्छी लगी .. अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद / साभार
नीलांश जी . कविता को पसंद करने के लिए आपका ह्रदय से शुक्रिया /आपको भी शुभकामनाये
आदरणीय सौरभ सर .. रचना पसंद करने और अनुमोदन के लिए आभारी हूँ / स्नेह बनाये रखे /
आदरणीय अशोक सर व् आदरणीया रेखा जी .. उत्साहवर्धन और सराहना के लिए आप सब का ह्रदय से आभारी हूँ
आदरणीय डॉ सूरज जी .. कविता को पसंद करने , बहुमूल्य विचार देने और सराहने के लिए ह्रदय से आभार ..सधन्यवाद
....हरी ओउम ...भ्रमर सर . आपकी सुंदर सरल विचार और प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ .
.स्नेह बनाये रखे धन्यवाद
आदरणीय जवाहर सर .. आभारी हूँ धन्यवाद आपका
बहुत खूब ,,आदरणीय प्रदीप सर .. आपकी टिपण्णी कभी तो रचना पे भी भारी पड़ जाती है ...
अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ .स्नेह बनाये रखे .. सधन्यवाद
आदरणीया राजेश दी व् आदरणीया सरिता दी .. कविता पसंद करने के लिए आभारी हूँ , हार्दिक धन्यवाद /
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