"|| "शुद्धगा छंद" ||"
(२८ मात्रा "१ २ २ २ १ २ २ २ १ २ २ २ १ २ २ २ ")
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यहाँ पर प्रेम पूजा प्रेमियों की जानता हूँ मैं
जहाँ पर है सखी भगवान जैसी मानता हूँ मैं
मिले जब नैन उनके नैन से तो धन्य होते वो
पुजारी प्रेम में डूबे सभी पहचानता हूँ मैं
युगों से है चली जो प्रेम की ये रीत है प्यारे
ह्रदय को हार जाना ही ह्रदय की जीत है प्यारे
सुखों में साथ देते सब दुखों में छोड़ देते हैं
दुखो में जो तुम्हारे साथ वो मनमीत है प्यारे
किया है रास जब जब भी मिले है कृष्ण राधा से
बताओ ये मुझे कब कब रुका है प्रेम बाधा से
सभी से प्रेम करने को अभी मोहन न बन जाना
नहीं था प्रेम उनका कम न मीरा से न राधा से
Comment
aapka bahut bahut aabhari hun @PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA sir ji ......
aapka aabhari hun sarita ji .........
बड़ी गहरी बात कही आपने संदीप जी, बधाई.
आदरणीय पटेल जी, सादर
racna विधि के साथ खूब सूरत rachna दी, सिखने को मिल रहा है abhar.
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