हाँ वो मेरी बेटी है
जो बगल में लेटी है
मेरा प्यार है वो
जीवन की बहार है वो
हमारे प्यार की निशानी
एक अनकही कहानी
खिलखिलाहट उसकी
दीवाना करती है
जाएगी दूजे घर
एक डर भरती है
खिली इस बगिया में
वो उपवन कैसा होगा
कली मासूम सी
काँटों मैं घिरी होगी
दूँगी वो शिक्षा
होगी रात तो
कभी सहर होगी
दुआ बाबुल की है
सुखी संसार होगा
पति का घर उसका
सुन्दर उपहार होगा
इस कुल उस कुल
अटूट बंधन होगा
प्रेम प्रतिष्ठा से
मान बढ़ाएगी
माँ वधू बेटी बन
जग रीति निभाएगी
हाँ वो मेरी बेटी है
Comment
आदरणीय अजय जी, सादर
निश्चित ही डर भरती है
धन्यवाद
आदरणीय गुरुदेव सौरभ जी, सादर अभिवादन
मैं भी आप जैसा हूँ, योग्यता में नहीं परिवार में.
आपकी शिक्षा जितनी प्रेरणा देती है उतनी आप के द्वारा की गयी मेरी प्रशंशा नहीं . आपके द्वारा बढ़िया अंक दिए गए है. आप ही का शिष्य भी तो हूँ. रचना सफल कही गुरु जी ने सब कुछ मिल गया. भले इसे कहीं भी स्थान न मिला हो. आपका हमेशा आभारी हूँ, बस स्नेह प्रदान किये रहिये. कट जायेगा सफर यूँ ही हँसते हँसते. सच्चे दिल से. आभार, महोदय जी.
आदरणीय अशोक जी , सादर अभिवादन
स्नेह प्रदान करने हेतु धन्यवाद
जाएगी दूजे घर
एक डर भरती है ....... Respected Pradeep ji,eyes really got wet.
आदरणीय प्रदीप जी, इसे कहते हैं शब्दों की महत्ता और उनकी ताक़त. आपने आँखों की कोर गीली कर दी और आपकी रचना सफल हो गयी. मैं भी दुलारियों का गर्वीला और सनातनी बाप हूँ.
सादर
आदरणीय प्रदीप जी
सादर,
खिलखिलाहट उसकी
दीवाना करती है
जाएगी दूजे घर
एक डर भरती है
बहुत ही भावपूर्ण रचना. बधाई.
स्नेही महिमा, शुभाशीष.
प्रोत्साहन हेतु धन्यवाद.
धन्यवाद आदरणीय रेखा जी, सादर
धन्यवाद स्नेही आशीष जी.
धन्यवाद ईश पुत्री, सस्नेह
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