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धुंए का शौक लग गया तो ज़िन्दगी गई

आज 31 मई विश्व  तम्बाकू  विरोधी दिवस पर एक  विशेष रचना


सुट्टों ने सोखा जिस्म, सेहतमन्दगी गई
धुंए का शौक लग  गया तो  ज़िन्दगी गई

छुप छुप के पीना छोड़, खुल्लेआम पी रहे
माँ की  लिहाज़,  बाप से शरमिन्दगी गई

गुटखा चबाने वाले की पिचकारी गज़ब थी
धोयी बहुत दीवार, पर न गन्दगी गई

ज़र्दा चबा चबा के मुँह को सन्त कर दिया
अब स्वाद और मसालों की पसन्दगी गई

अलबेलाजी दिन रात खोहों खोहों खांसते
पूजा, हवन,  नमाज़ गई,  बन्दगी गई

जय हिन्द !

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Comment

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Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 1, 2012 at 8:45am

अच्छी रचना है अलबेला जी ! दाद कुबूल करें !!

Comment by Rekha Joshi on June 1, 2012 at 8:27am

Albela ji 

सुट्टों ने सोखा जिस्म, सेहतमन्दगी गई 
धुंए का शौक लग  गया तो  ज़िन्दगी गई,bahut khub ,satik abhivykiti badhai

Comment by Albela Khatri on June 1, 2012 at 8:17am

बहुत बहुत  धन्यवाद और आभार  अरुण कुमार निगम जी..........शुक्रिया इस  दाद के लिए

आपकी रचना तो  और भी गज़ब की है,,,,,जय हो....बहुत ख़ूब !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on June 1, 2012 at 12:50am

तम्बाकू निषेध दिवस पर जन हित में जारी गज़ल की बधाइयाँ..............

हमारा सार्थक समर्थन...........................

तम्बाकू से बनी हुई हर चीज मौत है

हर बीबी ये कहे कि हमारी ये सौत है.

गम और खुशी के फर्क को महसूस कर जरा

हर फिक्र को धुँवे में उड़ाना तो फौत है...................

नाकामियाँ मिलें तो हार मानना न तू

खुद जल के रौशनी दे वो ,कहलाती ज्योत है...............

कुछ मिल गया वहीं पे मुकद्दर थमा नहीं

तू भी किसी की मांग का इक करवा चौथ है......................

Comment by Albela Khatri on May 31, 2012 at 10:33pm

आदरणीय सौरभ  पाण्डेय जी,  आपने बहुत कम लफ़्ज़ों में बहुत बड़ी, बड़ी भी क्या ....पूरी बात कह दी....उस्ताद लोग ऐसे ही  होते हैं....इशारा कर देते हैं ...शागिर्द  में अक्ल हो तो पकड़ ले, वरना बैठा बीड़ियाँ फूंकता  रहे .....

सचमुच  आपके साथ मेरी ख़ूब जमेगी....एक मंचीय  कलाकार ( कलाकार ही कहूँगा ...मंच पर कवि  को कौन टिकने देता है ) होने के नाते  मैं जानता हूँ कि  प्रस्तुति कसी हुई हो तभी मज़ा देती है...अन्यथा लोग  उपेक्षा करते समय नहीं लगाते....हा हा हा


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 31, 2012 at 10:19pm

सही है, इसी अंदाज़ में ही सटीक और गहरी बातें की जाती हैं.  उचित व्यंग्य या सटीक हास्य की तासीर सदा से प्रभावी होती है.

भाई अलबेलाजी की धार और कसावट आनन्द देती है. 

विशेष बात,  प्रस्तुत प्रतिक्रिया की पंक्तियों को लिखने वाला देसी इण्टोक्सिकेटिंग सब्स्टैंस का तरफ़दार है !! (संदर्भ,  ’आओ गटकें पान-सुपारी’... ) अलबेलाजी के साथ अपनी खूब जमेगी. हाँ, हास्य के नाम पर हम शून्य हैं..  या सही कहिये,  हास्यास्पद हैं .. :-)))))))))

Comment by Albela Khatri on May 31, 2012 at 10:18pm

आभार........बहुत बहुत धन्यवाद  उमाशंकर मिश्रा जी,  आपके स्नेह  का ऋणी हो गया हूँ .

Comment by Albela Khatri on May 31, 2012 at 10:16pm

सम्मान्य महिमाश्री जी,
सादर नमस्कार.
लिखने वाला तो अपनी मौज में लिख जाता है, बलिहारी तो उस  सराहक की  जो लेखक को  हौसला दे कर  आगे बढ़ाता है........आपने  मुझे  नव ऊर्जा दी है....और मैं इसका बहुत सम्मान करता हूँ
शुक्रिया ....जय हिन्द !

Comment by UMASHANKER MISHRA on May 31, 2012 at 9:33pm

बहेतरीन  प्रस्तुति- बेहतरीन कार्टून के साथ

कटु सत्य, साथ शिक्षाप्रद बधाई ..

Comment by MAHIMA SHREE on May 31, 2012 at 9:26pm

ज़र्दा चबा चबा के मुँह को सन्त कर दिया
अब स्वाद और मसालों की पसन्दगी गई

अलबेलाजी दिन रात खोहों खोहों खांसते
पूजा, हवन,  नमाज़ गई,  बन्दगी गई

आदरणीय अलबेला जी .. वाकई में कमाल का लिखा है आपने .. कितनी सरलता से गुटके से जनित रोगों को आपने हँसते हँसाते बता दिया .. बधाई स्वीकार करें  



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