For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

थम गया है वक़्त ..
जम गए हैं कदम ..
पसरा है सनसनाता सन्नाटा ..
अपना घर आँगन 
जो महकता था 
फूलों की बगिया सा,
गुलमोहर के पेड़ से 
झड़ते थे जहाँ आशीषों के फूल ..
अब है वीरान  खंडहर सा..
नहीं लौट रहे
स्नानकर, वापिस
अपने वीराने आशियाने की ओर
भारी कदम..
आँखों की बदरी में
पिघल रहे हैं गुज़रे लम्हें ,
जो दुआओं से रौशन थे
अब अन्धकार में डूबे हैं..
डबडबाई आँखें  
और भीगा मन
नहीं है इंतज़ार,
सिर्फ पसरा है
सूनापन..
उड़ गए हैं धुंआ बन 
उनकी रूह और जिस्म के साथ
हमारे अनगिन ख्वाब..
खोखला हो गया
अस्तित्व जैसे,
ज्वालामुखी फटे से
सूना हो जाए
गिरि का सीना
हमेशा के लिए...
 
 

Views: 732

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 5, 2012 at 11:29am

सुश्री रेखा जी,

इस काव्य में निहित भावों को सराहने हेतु आपका हार्दिक आभार.
Comment by Rekha Joshi on June 5, 2012 at 10:57am

Dr Prachi ji,डबडबाई आँखें  

और भीगा मन
नहीं है इंतज़ार,
यूँ पसरा है सूनापन..
उड़ गए हैं धुंआ बन 
आपकी रूह और जिस्म के साथ,bahut sundr bhaav
Comment by Albela Khatri on June 5, 2012 at 9:55am

भई चश्मा होने के बावजूद मैं देख नहीं पाया..........क्षमा  चाहता हूँ........मेरा बेटा सही कहता है ," पापा, तुम बुड्ढे हो गये हो" हा हा हा


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 5, 2012 at 9:53am

प्रिय महिमा जी, इस सन्नाटे को कविता के साथ साथ महसूस करने के लिए ह्रदय से आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 5, 2012 at 9:50am
हार्दिक आभार आदरणीय अलबेला खत्री जी...
सादर, शायद आपको कोई गलतफहमी हो गयी है.
आपकी हर टिप्पणी सर-आँखों पर, सर.
आपकी टिप्पणी यथास्थान ही है.
Comment by Albela Khatri on June 5, 2012 at 9:37am


डॉ प्राची सिंह जी, बहुत बहुत उम्दा कविता के लिए आपका ढेरों अभिनन्दन.
लेकिन इस कविता पर तो मैंने  रात को ही टिप्पणी कर दी थी............तो वो गई कहाँ  ?
क्या वो इतनी बुरी थी कि आपने  डिलीट कर दी ...हा हा हा . कोई बात नहीं...चलता है........जय हिन्द

Comment by Albela Khatri on June 4, 2012 at 10:25pm

डॉ प्राची सिंह जी आपको ख़ूब ख़ूब  बधाई इस  मार्मिक काव्य के लिए
हार्दिक अभिनन्दन
गिरी का सीना_____गिरि

Comment by MAHIMA SHREE on June 4, 2012 at 9:33pm
आँखों की बदरी में
पिघल रहे हैं गुज़रे लम्हें ,
जो दुआओं से रौशन थे
अब अन्धकार में डूबे हैं..
डबडबाई आँखें  
और भीगा मन
नहीं है इंतज़ार,

आदरणीया प्राची जी .. आपकी भावनाओ को नमन .. सत्य को स्वीकारती और अतीत को याद करती अभिव्यक्ति . सन्नाटा एक क्षण को यंहा भी पसर गया / बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 4, 2012 at 7:40pm
हार्दिक आभार आदरणीय अविनाश बागडे जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 4, 2012 at 7:36pm
हार्दिक आभार चन्दन राय जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service