दहशत-वहशत, ख़ूनखराबा बाबाजी
गुंडई ने है अमन को चाबा बाबाजी
काम से ज़्यादा संसद में अब होता है
हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा बाबाजी
मैक्डोनाल्ड में रौनक बढती जाती है
उजड़ रहा पंजाबी ढाबा बाबाजी
मन मधुबन के भीतर सारे तीरथ हैं
काशी-वाशी , क़ाबा-वाबा बाबाजी
देश समूचा खा कर ही पिंड छोड़ेंगे
दिल्ली पर जिनका है ताबा बाबाजी
कवि हो तो 'अलबेला' ऐसा गीत लिखो
लोग कह उठें शाबा शाबा बाबाजी
जय हिन्द !
Comment
आपका हार्दिक धन्यवाद उमाशंकर मिश्रा जी........
बहुत मजेदार कविता हास्य एवं व्यंग का संयोजन
अद्भुत है| मजा आ गया पढ़ कर बधाई आपको
आपकी शाबा शाबा ने तो मेरे ख़ून में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ा दी है राजेश कुमारी जी,
आपका हार्दिक धन्यवाद...........
वैसे देरी के लिए आप सॉरी न कहें क्योंकि आपकी इसमें कोई गलती नहीं है .....अरे आप तो पढ़ने में दो चार घंटे लेट हुए....मैं तो लिखने में कई साल लेट हो गया ......इसलिए सॉरी कहने का अधिकार सिर्फ़ मेरा है ...हा हा हा हा
वाह वाह वाह इतने अच्छे मजेदार में व्यंग कौन कर सकता है ...अलबेला जी अब हम भी बोलेंगे शाबा शाबा बाबा जी बहुत शानदार प्रस्तुति (सॉरी पढने में थोड़ी देर हो गई )
धन्यवाद रेखा जी..........
काम से ज़्यादा संसद में अब होता है
हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा बाबाजी ,अलबेला जी ,बहुत खूब
धन्य हो प्रदीप जी,
आपकी टिप्पणी ने तो आनन्द करा दिया ........जय हो !
धन्यवाद सीमा अग्रवाल जी,
आपकी बधाई सर आँखों पर.............बहुत बहुत शुक्रिया
गीत तो ऐसा रचया है छा गया वसंत बाबा जी
'सूरज' जी, आपकी दाद पा कर मुझे भी मज़ा आ गया .......
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