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कोई शायर ग़ज़ल से मिल रहा जैसे

सदा मैंने सुनी उसने कहा जैसे
नहीं आती नज़र वो है खुदा जैसे

ग़मों में भी हसीं मुस्कान रखते हैं
कभी पानी न आँखों से बहा जैसे

उसे मैं देख कर खो ही गया मौला

कोई शायर ग़ज़ल से मिल रहा जैसे

भुला मुझको किसी के हो गए वो तो
मुहब्बत मैं हुई मुझसे खता जैसे

भटकता मैं रहा लेकिन न मिल पाई
नज़र जादू भरी उसकी अदा जैसे

रुका हूँ "दीप" मैं हर एक आहट सुन
पलट कर देखता आई सदा जैसे

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by UMASHANKER MISHRA on June 11, 2012 at 5:52pm

बहेतरीन गजल

दिल को छू गई आपकी हर एक लाइन

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 11, 2012 at 10:16am

सुन्दर गजल हेतु हार्दिक बधाई.

Comment by Ram Krishna Khurana on June 10, 2012 at 10:23pm

सुंदर ग़ज़ल है ! बधाई !

राम कृष्ण खुराना 

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