लुटेरे वतन के वतन बेच देंगे
धरा लुट गयी तो गगन बेच देंगे
सजावट बनावट जिसे भा रही हो
कली फूल क्या है चमन बेच देंगे
अगर आँख खोली न अपनी अभी तो
फरेबी कलामो- रमन बेच देंगे
बनाया नहीं गर नया कुंड कोई
बली दे पुजारी हवन बेच देंगे
हटा ली निगाहें अगर झूठ से अब
शहादत निगल के कफ़न बेच देंगे
न दहशत न वहशत मिटेगी कभी भी
जमीं से सियासी अमन बेच देंगे
न फानूश अब तो खुदा भी रहा है
बुझा "दीप" आमिल पवन बेच देंगे
संदीप पटेल "दीप"
Comment
संदीप जी वाह !! बहुत खूब बधाई
सजावट बनावट जिसे भा रही हो
कली फूल क्या है चमन बेच देंगे ,badhiya rachna ,badhai
waah !
behtareen gazal
badhaai ho bhai Sandeep Patel DEEP ji...........
कसावट भरी गजल भ्रष्ट व्यवस्था,भ्रष्ट आचरण पर
बहुत ही आक्रामक प्रयोग
गजल में ऐसा प्रयोग बेहतरीन है इतनी सुन्दर रचना के लिए बधाई
उम्दा गज़ल , बहर का बहुत बढ़िया प्रयोग, ज़बरदस्त गज़ल रचना के लिए आपको बधाई ...........
एकदम सच कहा है , आपने | मेरी एक कविता है , मई में लिखी थी , पर भूलवश पहले फेसबुक पर डाल दी थी | पूर्व प्रकाशित ओबीओ में नहीं प्रकाशित होता , इसलिए ओबीओ पर नहीं डाली | उसका एक पड़ आपको नजर है ..
हर चेहरे पर नकाब चिपका हो ,
बड़ा वही जो बिकता हो ,
कितना नाम को रोईये ,
कितना ईमान को रोईये ,
अच्छी रचना के लिए बधाई |
बहुत सुन्दर बात कही. अब बेचने पे आमादा हैं तो कुछ भी असंभव नहीं. बधाई
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