यूँ बदनाम अपना वतन हो रहा है
था धरती कभी अब गगन हो रहा है
जो चढ़ फूल देवों 'प' इतरा रहे हैं
बे-ईमान सारा चमन हो रहा है
जो पग में चुभा था कभी खार बनके
वो झूठा फरेबी सुमन हो रहा है
दी आहूति सपनों भरी अब युवा ने
लो सपनों बिना ही हवन हो रहा है
है दहशत भरी उस गली की कहानी
यूँ करके धमाके अमन हो रहा है
है चन्दन किसी की चिता के लिए अब
औ चिथड़ा किसी का कफ़न हो रहा है
जो बस पढ़ रहा है रुपैया कमाना
वो अब तो यहाँ का रमन हो रहा है
लो अब बिक न जाए हमारा वतन ये
तो बेचैन व्याकुल ये मन हो रहा है
जो खुद दीप घर के बुझा के चला था
वो गद्दार शीतल पवन हो रहा है
संदीप पटेल "दीप"
Comment
जो बस पढ़ रहा है रुपैया कमाना
वो अब तो यहाँ का रमन हो रहा है...
इसी देश में कुछ दशक पहले भी शिक्षकों को अन्य पेशों के मुकाबले कम मेहनताना प्राप्त होता था , पर वे असंतुष्ट नहीं रहते थे , क्योंकि समाज में उनका सम्मान था और एक प्रतिष्ठित स्थान था | उस स्थान को छीनने के बाद , परंपरागत पढाई को नंगा कर कोने में बिठालने के बाद , उसकी जगह बाजार में प्रोफेशनल शिक्षा देने के नाम पर , खुद के सहित सब कुछ बेचने की कला सिखाने वाली पढाई को प्रमुखता देने के बाद , आपको लगता है कि बेस्ट माईन्ड्स के लिए शिक्षा के क्षेत्र में कोई स्थान है ?
आपकी पंक्तियों ने छू लिया .. बधाई |
परम आदरणीय Ganesh Jee "Bagi" सर जी सादर नमन
मैंने आपका इशारा समझ गया इसको मैं इस तरह से एडिट कर रहा हुँ
यूँ कहते धमाके अमन हो रहा है
इस हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद और सादर आभार सादर नमन आपको
आदरणीय Albela Khatri सर जी , आदरणीय AVINASH S BAGDE सर जी , आदरणीय आशीष यादव जी , आदरणीय Nilansh जी आदरणीया Rekha Joshi महोदया जी ,आदरणीया rajesh kumari महोदया जी
आप सभी का ह्रदय से धन्यवाद और सादर आभार
अपने ये स्नेह इस अनुज पर यूँ ही बनाये रखें अभी मैं कुछ दिनों के लिए अपने घर आया हूँ यहाँ पर बिजली की समस्या है इस वजह से प्रातक्रिया देने मैं असमर्थ हूँ
आप मुझे क्षमा करेंगे
ल ला ला ल ला ला ल ला ला ल ला ला
वाह वाह , बहुत खूब दीप जी, कहन, काफिया , रदीफ़, वजन सब कुछ वाह वाह, बहुत ही अच्छी गज़ल कही है | एक जगह आपका ध्यानकर्षण चाहूँगा .....
हैं हर-सू धमाके अमन हो रहा है
बहुत खूब
जो पग में चुभा था कभी खार बनके
वो झूठा फरेबी सुमन हो रहा है
bahut sunder sandip ji
bahut badhai
Sandip ji ,
जो बस पढ़ रहा है रुपैया कमाना
वो अब तो यहाँ का रमन हो रहा है,sundr rachna badhai
जो पग में चुभा था कभी खार बनके
वो झूठा फरेबी सुमन हो रहा है.....wah!Sandeep bhai...
waah ji weaah sandeep patel DEEP ji,
bahut khoob
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