''''''''''''''''''''''''''''''''२ मुक्तक '''''''''''''''''''''''''''''''''''
१.
नित बातों से रस बहता है, जैसे तुम मधु हो मधुवन की
मैं देखूं मुख इक टक तेरा ,खिलती सी कली हो उपवन की
ते तन तेरा ये मन तेरा, दूरी मत देना इक पल की
तुम से ही चलती हैं साँसें, इक तुम ही जरुरत जीवन की
२.
है गौर वर्ण ये तन तेरा, मुखड़े पे प्रभा है दिनकर की
ये केश तुम्हारे कृष्ण निशा,मुस्कान लगे है निशिकर की
है मेघ तुम्हारी पलकें ये, इनके झुकते ही साँझ ढले
जब आँख खुले तो दिन होता, जैसे राधा हो मधुकर की
संदीप पटेल "दीप"
Comment
बहुत सुन्दर मुक्तक
संदीप जी ,सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई |
waah ji waah
purane din yaad kara diye aapne...............:-)))))
bahut achche muktak hein sandeep ji.....badhaai
आदरणीय संदीप जी सादर
आपके मुक्तक मुख तक ही पहुंचे . हजम करने का माद्दा मुझमे नहीं. उम्र भी कोई चीज होती है. ये बेबसी को जाना यहीं.
लाजवाब, लिखते रहिये. बधाई.
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