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''''''''''''''''''''''''''''''''२ मुक्तक '''''''''''''''''''''''''''''''''''

१.
नित बातों से रस बहता है, जैसे तुम मधु हो मधुवन की
मैं देखूं मुख इक टक तेरा ,खिलती सी कली हो उपवन की
ते तन तेरा ये मन तेरा, दूरी मत देना इक पल की
तुम से ही चलती हैं साँसें, इक तुम ही जरुरत जीवन की
२.
है गौर वर्ण ये तन तेरा, मुखड़े पे प्रभा है दिनकर की
ये केश तुम्हारे कृष्ण निशा,मुस्कान लगे है निशिकर की
है मेघ तुम्हारी पलकें ये, इनके झुकते ही साँझ ढले
जब आँख खुले तो दिन होता, जैसे राधा हो मधुकर की

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by rajesh kumari on June 5, 2012 at 6:27pm

बहुत सुन्दर मुक्तक 

Comment by Rekha Joshi on June 5, 2012 at 5:57pm

संदीप जी ,सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई |

Comment by Albela Khatri on June 5, 2012 at 5:37pm

waah ji waah

purane din yaad kara diye aapne...............:-)))))

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on June 5, 2012 at 5:03pm

bahut achche muktak hein sandeep ji.....badhaai

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 5, 2012 at 4:46pm

आदरणीय संदीप जी सादर 

आपके मुक्तक मुख तक ही पहुंचे . हजम करने का माद्दा मुझमे नहीं. उम्र भी कोई चीज होती है. ये बेबसी को जाना यहीं.

लाजवाब, लिखते रहिये. बधाई.

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