पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
मासूम सी कली तू बगिया में खिली है
थे कांटे वहाँ भी जिस घर में पली है
चुन लूँ तेरे कांटे जीवन संवार लूँ
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
बचपन में तेरे माँ बाप यों सो गए
खा गया था काल तुम थे रो रहे
पालूंगा मैं तुझको सौ जीवन उधार लूँ
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
देता हूँ तुझे शिक्षा आन बान की
रखना तू लाज मेरे घर की शान की
कर दूँ तुझे विदा जीवन सुधार लूँ
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
बेटी तू इस घर की उस घर को जाएगी
देखे हैं जो सपने उनको सजाएगी
सपने जो हैं तेरे उन्हें साकार कर लूँ
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
Comment
आदरणीय अलबेला खत्री जी, सादर अभिवादन
आपने सराहा , तृप्ति हुई. धन्यवाद.
आदरणीय अविनाश जी, सादर
मर्म को जाना. बधाई
आदरणीय बिश्वजीत जी, सादर
आपको गीत पसंद आया. धन्यवाद.
आदरणीय मनु जी, सादर
बधाई स्वीकार है. धन्यवाद.
बहुत भावुक कर दिया प्रदीप जी,
इतना कोमल, इतना मर्मान्तक और इतना उत्तम गीत प्रस्तुत करने पर आपका अभिनन्दन !
जय हो !
पानी के थपेडों से आ तुझ को बचा लूँ
जीवन की डगर कठोर आ गोदी में उठा लूँ
Pradeep ji,
jane kis kali ko kendrit kar aap ye rachana pesh kar rahe hai pata nahi kinu hai marm-sparshi..
shayad kuchh log ro bhi le...
बहुत ही उम्दा रचना, बधाई स्वीकार करे प्रदीप जी ....
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