छा गए नभ पे बादल
धरा पे हलचल हो गयी
बह चली शीतल पवन
आशाएं तरंगित हो गयी
बरसेगा धरती पे जल
किसान चलाएगा हल
डालेगा बीज खेतों में
स्वर्णिम होगा घर घर
बरखा बूँदें गिरने से
धरा तो गीली हो गयी
छा गए नभ पे बादल
धरा पे हलचल हो गयी
बह चला पानी धरती पर
अमूल्य है ये निर्मल जल
हो जाए कहीं बेकार नहीं
बना के मेड़ों पर बंद
जल निकास नाली हो गयी
छा गए नभ पे बादल
धरा पे हलचल हो गयी
देखा मौसम बारिश का
झूम उठा मयूर मन
भीगी चोली भीगा तन
हर्षित पुलकित हुआ जन
लगाये नाना पौध सभी
धरा पे हरियाली हो गयी
छा गए नभ पे बादल
धरा पे हलचल हो गयी
Comment
आदरणीय बिस्वजीत जी, सादर
मौज लीजिए न . धन्यवाद.
प्रिय कुमार जी, सस्नेह
तड़प का आनंद ही कुछ और है.
धन्यवाद.
आदरणीय अलबेला खत्री जी, सादर अभिवादन
आपने रचना के प्रत्येक अंग का बारीकी से आनंद लिया , धन्यवाद.
चोली देखी तो नही पर फिल्मों में गीतों आदि के माध्यम से जाना. शायद ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रयोग होता होगा. अब ये डाइनासोर की तरह गायब होने वाली है. रही बात पैजामा कुर्ते की तो इस पे भी शायद गीत बना है पैजामा तंग है कुरता ढीला. आप जानते हैं कि पानी की कितनी तंगी है. चोली में पानी कम और कुर्ते पैजामे में ज्यादा पानी लगता. तो इसे कट कर दिया गया. फिर आप उनमें से तो हैं नहीं जो देश को बर्बाद कर रहे हैं कुरता पैजामा पहन कर. अपनों का भी तो ध्यान रखना हमारा फर्ज है. धन्यवाद जी .
आदरणीय अरुण जी, सादर
आपका स्नेह मेरी प्रेरणा है. धन्यवाद.
बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय अविनाश जी.
वाह ! वाह ! आदरणीय प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी........बहुत खूब !
नभ, बरसात और माटी को लेकर बहुत सुन्दर रचना आपने रची...बांच कर मन प्रसन्न हुआ
आपको मेरी ख़ूब ख़ूब बधाई
बस एक बात समझ नहीं आई
______चोली के भीगने का वर्णन तो आपने याद रख कर कर दिया ......मेरा कुर्ता पायजामा भी तो भीगा, उसे आप क्यों भूल गए ? थोड़ा हम कुर्ते वालों को भी याद रखा करो जी.....हा हा हा हा
सुन्दर कविता ..बधाई .
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