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कितने ही प्रतिष्ठित समाजसेवी संगठनों में उच्च पद-धारिका तथा सुविख्यात समाज सेविका निवेदिता आज भी बाल श्रम पर कई जगह ज़ोरदार भाषण देकर घर लौटीं. कई-कई कार्यक्रमों में भाग लेने के उपरान्त वह काफी थक चुकी थी. पर्स और फाइल को बेतरतीब मेज पर फेंकते हुए निढाल सोफे पर पसर गई.  झबरे बालों वाला प्यारा सा पप्पी तपाक से गोद में कूद आता है.

"रमिया ! पहले एक ग्लास पानी ला ... फिर एक गर्म गर्म चाय.........." 

दस-बारह बरस की रमिया भागती हुई पानी लिये सामने चुपचाप खड़ी हो जाती है.

"ये बता री, आज पप्पी को टहलाया था?"

"माफ़ कर दो मेम साब, सारा दिन बर्तन मांजने, घर की सफाई और कपडे धोने में निकल गया इस लिए आज पप्पी को टहला नहीं पाई...."

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Comment by प्रवीण कुमार श्रीवास्तव on June 30, 2012 at 5:10pm
बहुत सुन्दर लघुकथा. यही तो अपने समाज की विडम्बना है।
Comment by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 7:22pm

चरित्र और चरित का विरोधाभास! सुन्दर प्रस्तुति! 

Comment by savi on June 28, 2012 at 6:50pm

aadarniy kushwaha ji, isi ko kahte hai kathni kuch aur karni kuch aur | isi trah in mukhota lagaye logo se savdhan karte rahiyega |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on June 24, 2012 at 3:04pm

यही हो रहा है. मंच के भाषण और अपने जीवन-यापन में परिभाषायें भिन्न भिन्न हो गई हैं. भाषणबाजों तक यह लघु कथा पहुँचे.कुछ तो सुधार हो.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 22, 2012 at 4:36pm

धन्यवाद आदरणीय उमा शंकर जी, समर्थन हेतु. सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 22, 2012 at 4:35pm

आदरणीय गुरुदेव सौरभ जी, 

सादर 

आपकी आज्ञा शिरोधार्य , आभार हर एक चीज हेतु. शिष्य हूँ. इतना ही कहने की स्थिति में हूँ. 

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 16, 2012 at 10:53pm

बिलकुल सही कथा

आज समाज में ऐसे ही बहुरूपिये लोग बहुत मिलेंगे

जिनकी कथनी और करनी अलग अलग होती है

बहुत बढिया


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Comment by Saurabh Pandey on June 16, 2012 at 6:03pm

समाज में व्याप्त दोहरे मानदण्ड को आपने बखूबी उभारा है.  इस सशक्त लघुकथा के लिये आदरणीय प्रदीप जी आपको सादर बधाइयाँ. 

शिल्प की कसौटी पर सधी हुई इस लघुकथा के लिये विशेष साधुवाद.  अलबत्ता रमिया द्वारा कहलाये गये वाक्य को थोड़ा और क्रिस्प बनाया जा सकता था.  दस-बारह बरस की घबराई हुई बच्ची के लिये अपनी मालकिन के सामने इतना कुछ एक वाक्य में कहना सहज न रहा होगा.

सादर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 16, 2012 at 5:03pm

आदरणीय नीलांश  जी, सादर 

सराहना हेतु आभार 

Comment by Nilansh on June 16, 2012 at 10:14am

aadarniya pradeep ji ,ek acchi laghu katha

saadar

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