ओ बी ओ परिवार के समस्त स्वजनों को अलबेला खत्री का विनम्र प्रणाम .
एक शो और एक शूटिंग के चलते मैं तीन दिन सूरत से बाहर रहा . इसलिए यहाँ हाज़िरी नहीं दे पाया . परन्तु अच्छा ये रहा कि महा उत्सव में एक कुंडलिया और एक घनाक्षरी मैंने टी वी पर भी सुनाई तो लोगों ने ख़ूब सराहा . बाबाजी वाली एक ग़ज़ल भी मैंने "बहुत ख़ूब" प्रोग्राम में प्रस्तुत कर दी अगले हफ्ते उसे आप दबंग चैनल पर देख सकेंगे. एक तुकबन्दी आज पुनः आपकी सेवा में रख रहा हूँ .
सादर
घर-घर से आवाज़ ये आई बाबाजी
मार ही देगी ये महंगाई बाबाजी
जनता जब से जूत चलाना सीख गई
नेताओं की शामत आई बाबाजी
उसके आगे कोई बहाना ना चलता
बहुत तेज़ है मेरी लुगाई बाबाजी
जाने क्यों मुम्बई में घर से भी ज़्यादा
ओ बी ओ की याद थी आई बाबाजी
हमने सुना है सारी ख़ुदाई एक तरफ़
एक तरफ़ जोरू का भाई बाबाजी
35 लाख का टायलेट क्यों न हो इनका
सत्ता में हैं ये इंकाई बाबाजी
एक बार तुम राजनीति में घुस जाओ
फिर कितनी भी करो कमाई बाबाजी
बाहर से तो हँसा रहा है 'अलबेला'
लेकिन भीतर भरी रुलाई बाबाजी
Comment
सौन्दर्य तो आप जैसे गुणी पाठकों व मित्रों की दृष्टि में है सम्मान्य डॉ प्राची सिंह जी, परन्तु आपके शब्दों से जो उत्साह वर्धन होता है उसके लिए मैं और बाबाजी दोनों आपके धन्यवादी हैं
सादर
सम्मान्य सौरभ जी,
सचमुच, घर के लोगों की याद आती ही है.......
अच्छी तुक लगाई जी आपने........ये बाबा लोग अपने को बाबाजी बना के ही छोड़ेंगे...हा हा हा
आभार आपकी प्रतिक्रिया और सराहना के लिए
सादर
जाने क्यों मुम्बई में घर से भी ज़्यादा
ओ बी ओ की याद थी आई बाबाजी
परिवार के सदस्यों की हर घड़ी याद आती रहती है. यह प्रेमीजन की सामान्य दशा है. ..
इस बाबाजी प्रकरण के लिये सादर बधाइयाँ. देखिये ये बाबाजी कितने स्कैम पर से पर्दा उठाते हैं ..
आपकी तुक में मुझे भी सुर मिलाता देखिये, भाईजी -
जबसे हमने खुद पर हँसना सीख लिया
भली लगे हर पीर पराई बाबाजी.. .
सम्मान्य अरुण कान्त शुक्ला जी,
आओ थोड़ा मिल कर हँसलें.............हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
जय हो !
भाई कुमार गौरव अजीतेन्दु जी,
आपकी टिपण्णी भी गर्दा है...हा हा हा
___आभार
बाहर से तो हँसा रहा है 'अलबेला'
लेकिन भीतर भरी रुलाई बाबाजी
जिंदगी की यही है सचाई बाबाजी
जब रोना था , तभी हंसी आई बाबाजी ... हा.. हा..बहुत बढ़िया बाबाजी ..
आपकी सराहना सर आँखों पर आदरणीय बिश्वजीत यादव जी.......
आभार
श्रद्धेय उमाशंकर मिश्रा जी.........मैं अच्छी कविता उसी को मानता हूँ जो सभी वर्ग के लोगों को पसंद आये. काव्य का कथ्य और उसकी सरल सहज भाषा जन जन तक पहुंचे और उसे आनंद अथवा प्रेरणा दे, यही तो सफलता है सृजन की .
आपने बहुत ही सार्थक टिपण्णी दे कर मेरा मनोबल बढ़ाया है
आपको शत शत धन्यवाद
बहुत बहुत धन्यवाद डॉ सूरज जी,
आपकी सराहना सदैव बल देती है
आभार
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