बिटिया रानी खिली कली सी
सागर चीरे- परी सी आई
बांह पसारे स्वागत करती
जन मन जीते प्यार सिखाई !
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कदम बढ़ाओ तुम भी आओ
धरती अम्बर प्रकृति कहे
गोद उठा लो भेद भाव खो
सोन परी हिय मोद भरे !
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हहर-हहर मन ज्वार सरीखा
चन्दा को अपनाने दौड़ा
कहीं न मुड़ जाए 'पूनम' सा
नैन हिया भर सीपी -मोती पाने दौड़ा !
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बिना कल्पना ,बिन प्रतिभा के
लक्ष्मी कहाँ ? रूठ ना जाए
आओ प्यारे फूल बिछा दें
चरण 'देवि' के नेह लुटाएं !
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ये अद्भुत मुस्कान- धरा की
दर्द व्यथा कल से हर लेगी
सोन चिरइया -नदी दूध की
कल्प-वृक्ष बन वांछित फल देगी !
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर ५ '
कुल्लू यच पी १९.६.२०१२
Comment
आदरणीया रेखा जी सोन परी के स्वागत की इस रचना की ये पंक्तियाँ आप के मन को छू सकीं लिखना सार्थक रहा प्रोत्साहन कृपया बनाये रखें
आदरणीय कुशवाहा जी . बिटिया रानी के स्वागत की ये रचना आप को अच्छी लगी सुन ख़ुशी हुयी ....आप का समर्थन मिला ....आभार
प्रिय डॉ सूरज जी ..संसार छे चाले छे ..गृहस्थी में सब कुछ निभाना पड़ता है ..आप की ही तरफ आया था लू के थपेड़े और गर्मी १५ दिन ..अब वापस आप सब के बीच ..रचना आप को अच्छी लगी सुन ख़ुशी हुयी आभार
बिटिया रानी खिली कली सी
सागर चीरे- परी सी आई
बांह पसारे स्वागत करती
जन मन जीते प्यार सिखाती ,
बढ़िया पंक्तियाँ ,बधाई
ये अद्भुत मुस्कान- धरा की
दर्द व्यथा कल से हर लेगी
सोन चिरइया -नदी दूध की
कल्प-वृक्ष बन वांछित फल देगी !
आदरणीय भ्रमर जी, सादर
सत्य कहा आपने. बधाई.
सुरेन्द्र भाई नमस्कार ! बहुत दिनों बाद दर्शन हुए कहाँ ग़ायब हो गए थे भाई ! लेकिन आपका आगमन बड़ी सुंदर कविता के साथ हुआ है। अच्छा लगा ...बहुत बहुत बधाई!!
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