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ओस बूँद भी झिलमिला, अपने पास बुलाय .
प्राची से ऊषा खिली,स्वर्ण थाल ले हाथ
किरणें जग को बाँटती,सूर्य देव हैं साथ |
प्राची लाती है सुबह और प्रतीची शाम
दौड़ धूप दिन कर रहा रात करे विश्राम |
सुंदर दोहे झूमते,आज प्रकृति के संग
हैं सोलह श्रृंगार में सोलह सोलह रंग |
अपने दोहों में प्रकृति के सभी रंग समेट लिये हैं. सौंदर्य देखते ही बन रहा है. टिप टिप छप छप का प्रयोग ध्वन्यात्मकता उत्पन्न कर रहा है."करेंगे न संहार" पढ़ने में जरा अटक रहा है, क्या अंतिम पंक्ति " ये जीवन के मूल हैं,करें नहीं संहार" किया जा सकता है ?
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